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निवेदन - नाथ ! थारै सरण पड़ी दा...

’निवेदन’ मे प्रस्तुत जो भी भजन है, वे सभी विनम्र भावोंके चयन है ।


नाथ ! थारै सरण पड़ी दासी ।

(मोय) भवसागरसे त्यार काटद्यो जनम-मरण फाँसी ॥टेक॥

नाथ ! मैं भोत कष्ट पाई ।

भटक-भटक चौरासी जूणी मिनख-देह पाई ।

मिटाद्यो दु:खाँकी रासी ॥१॥

नाथ ! मैं पाप भोत कीना ।

संसारी भोगाँकी आसा दु:ख भोत दीना ।

कामना है सत्यानासी ॥२॥

नाथ ! मैं भगति नहीं कीनी।

झूठा भोगाँकी तृसनामें उम्मर खो दीनी ।

दु:ख अब मेटो अबिनासी ॥३॥

नाथ ! अब सब आसा टूटी ।

(थोर) श्रीचरणाँकी भगति एक है संजीवन-बूटी ।

रहूँ नित दरसणकी प्यासी ॥४॥

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Last Updated : January 22, 2014

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