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निवेदन - हे दयामय ! दीनबन्धो !!...

’निवेदन’ मे प्रस्तुत जो भी भजन है, वे सभी विनम्र भावोंके चयन है ।


हे दयामय ! दीनबन्धो !! दीन को अपनाइये ।

डूबता बेड़ा मेरा मझधार पार लँघाइये ।

नाथ ! तुम तो पतितपावन, मैं पतित सबसे बड़ा ।

कीजिये पावन मुझे, मैं शरणमें हूँ आ पड़ा ॥२॥

तुम गरीबनिवाज हो यों जगत् सारा कह रहा ।

मैं गरीब अनाथ दु:ख-प्रवाहमें नित बह रहा ॥३॥

इस गरीबीसे छुड़ाकर, कीजिये मुझको सनाथ ।

तुम सरीखे नाथ पा फिर, क्यों कहाऊँ मैं अनाथ ॥४॥

हो तृषित आकुल अमित प्रभु ! चाहता जो बूँद नीर ।

तुम तृषाहारी अनोखे उसे देते सुधा-क्षीर ॥५॥

यह तुम्हारी अमित महिमा सत्य सारी है प्रभो !

किसलिये मैं रहा वंचित फिर अभी तक हे विभो ! ॥६॥

अब नहीं ऐसा उचित प्रभु ! कृपा मुझ पर कीजिये ।

पापका बन्धन छुड़ा नित-शान्ति मुझको दीजिये ॥७॥

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Last Updated : January 22, 2014

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