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यक्ष्मोत्पत्ति

रोग हनन व्रत - यक्ष्मोत्पत्ति

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


यक्ष्मोत्पत्ति

( कालिकापुराण ) - क्षययक्ष्मा अथवा राजयक्ष्माके विषयमें कालिकापुराणकी कथाके श्रवण करनेसे अपूर्व लाभ होता है । कथा इस प्रकार है - ' दक्षप्रजापतिके सत्ताईस कन्याएँ थीं । उनका चन्द्रमाके साथ विवाह हुआ । उनमें एकका नाम रोहिणी था; औरोंकी अपेक्षा चन्द्रदेव उससे अधिक प्रसन्न रहते थे । यह देखकर अन्य पत्नियोंने पितासे प्रार्थना की । तब दक्षने चन्द्रदेवको समझाया कि आप सबके साथ समान स्नेह रखें किंतु चन्द्रमाने ऐसा नहीं किया । तब दक्षप्रजापति बड़े क्रोधित हुए और उनके क्रोधानलसे राजयक्ष्मा उत्पन्न होकर चन्द्रमाके शरीरमें प्रविष्ट हो गया । फिर क्या था, चन्द्रदेव प्रतिदिन क्षीण होने लगे और उनका विश्वव्यापी सुप्रकाश भी घट गया । चन्द्रमाकी इस क्षीणकाय अवस्थासे संसारकी हनि समझकर ब्रह्माजीने उनके शरीरसे यक्ष्माको निकाल लिया और आज्ञा दी कि ' जो लोग स्त्रीके साथ अधिक सहवास करें उनके शरीरमें तुम सुखसे रहो । वहाँ मृत्युकी पुत्री तृष्णा तुम्हारी आज्ञामें रहेगी । वह तुम्हारे ही समान गुणवाली है । अतः तुम जो चाहोगे वही कर सकेगी । इसके सिवा जो लोग श्वास, कास और कफके रोगी होकर भी स्त्रीके साथ सहवास रखें , उनके शरीरमें भी तुम प्रविष्ट रहो और उनको प्रतिक्षण क्षीण करते रहो । जाओ, तुम यथेच्छ विचरण करो । तुम्हारा यह काम स्थायी रहेगा ।' ऐसा ही हुआ और तब अधिक हो रहा है ।

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Last Updated : January 16, 2012

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