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अजीर्णहरव्रत

रोग हनन व्रत - अजीर्णहरव्रत

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


अजीर्णहरव्रत

( ऋग्वेदविधान ) - बहुत दिनोंका अजीर्ण१ भुक्त पदार्थोंके अपाचन, चिन्ता आदि कारणोंसे होता है । इसके लिये ' अग्निरस्मि०' ऋचाके एक हजार जप और घृतप्लावित त्रिकुटा ( सोंठ, मिरच और पीपल ) की एक सौ आहुति देकर उपवास करे और दूसरे दिन वेदज्ञ ब्राह्मणको हविष्यान्नका भोजन कराकर पारण करे ।

यस्य भुक्तं न जीर्येत न तिष्ठेद् वा कथञ्चन ।

तस्मादजीर्णरोगोऽयं ......................................... ॥ ( पराशर )

अत्यम्बुपानाद् विषमाशनाच्च संधारणात् स्वप्नविपर्ययाच्च ।

कालेऽपि सात्म्यं लघु चापि भुक्तमन्नं न पाकं भजते नरस्य ॥

ईर्ष्याभयक्रोधपरिप्लुतेन लुब्धेन शुग्दैन्यनिपीडितेन ।

प्रद्वेषयुक्तेन च सेव्यमानमत्रं न सम्यक् परिपाकमेति ॥ ( माधव )

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Last Updated : January 16, 2012

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