कार्तिक शुक्लपक्ष व्रत - अन्नकूट

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


अन्नकूट

( भागवत और व्रतोत्सव ) -

कार्तिक शुक्ल प्रतिपदाको भगवानके नैवेद्यमें नित्यके नियमित पदार्थोंके अतिरिक्त यथासामर्थ्य ( दाल, भात, कढ़ी, साग आदि ' कच्चे ' ; हलवा, पूरी, खीर आदि ' पक्के '; लड्डू, पेडे़, बर्फी, जलेबी आदि ' मीठे ' ; केले, नारंगी, अनार, सीताफल आदि ' फल ' - फूल; बेंगन, मूली, साग - पात, रायते, भूजिये आदि ' सलूने ' और चटनी, मुरब्बे, अचार आदि खट्टे - मीठे - चरपरे ) अनेक प्रकारके पदार्थ बनाकर अर्पण करे और भगवानके भक्तोंको यथाविभाग भोजन कराकर शेष सामग्री आशार्थियोंमें वितरण करे । अन्नकूट यथार्थमें गोवर्धनकी पूजाका ही समारोह है । प्राचीन कालमें व्रजके सम्पूर्ण नर - नारी अनेक पदार्थोंसे इन्द्रका पूजन करते और नाना प्रकारके षडरसपूर्ण ( छप्पन भोग, छत्तीसों व्यञ्जन ) भोग लगाते थे । किंतु श्रीकृष्णने अपनी बालकावस्थामें ही इन्द्रकी पूजाको निषिद्ध बतलाकर गोवर्धनका पूजन करवाया और स्वयं ही दूसरे स्वरुपसे गोवर्धन बनकर अर्पण की हुई सम्पूर्ण भोजन - सामग्रीका भोग लगाया । यह देखकर इन्द्रने व्रजपर प्रलय करनेवाली वर्षा की, किंतु श्रीकृष्णने गोवर्धन पर्वतको हाथपर उठाकर और व्रजवासियोंको उसके नीचे खड़े रखकर बचा लिया ।

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Last Updated : January 22, 2009

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