भाद्रपद शुक्लपक्ष व्रत - कटिपरिवर्तनोत्सव

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


कटिपरिवर्तनोत्सव

( भविष्योत्तर ) -

भाद्रपद शुक्ल एकादशीको भगवानका कटिपरिवर्तन करावे । उसके लिये देव - प्रबोधिनीके समान सम्पूर्ण विधान बनवाकर भगवानको विमानमें विराजित करके गायन, वादन, नर्तन, कीर्तन और जय - घोषादिके साथ जलाशयपर ले जाय और वहाँ जलपानादि साधनोंसे उनको दोलायमान करके वापस लाकर संध्याके कराके जागरण करे और दूसरे दिन पूर्वाह्णमें ' वासुदेव जगन्नाथ प्राप्तेयं द्वादशी तव । पार्श्वन परिवर्तस्व सुखं स्वपिहि माधव ॥' से प्रार्थना करके पारणा करे । राजपूतानेमें यह उत्सव ' जलझूलनी ' के नामसे प्रसिद्ध है और सामान्य या विशेष यथायोग्य आयोजनोंसे सर्वत्र ही मनाया जाता है ।

१. उदये त्रिमुहूर्तापि ग्राह्यानन्तव्रते तिथिः ।

२. तथा भाद्रपदस्यान्ते चतुर्दश्यां द्विजोत्तम ।

पौर्णमास्याः समायोगे व्रतं चानन्तकं चरेत् ॥

३. मध्याह्ने भोज्यवेलायाम् । इति ।

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Last Updated : January 21, 2009

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