ज्येष्ठ शुक्लपक्ष व्रत - दुर्गन्धि दुर्भाग्यनाशक व्रत

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


दुर्गन्धि - दुर्भाग्यनाशक व्रत ( भविष्योत्तर ) -

ज्येष्ठ शुक्ला त्रयोदशीको किसी पवित्र नदीके किनारे जाकर सूर्यनारायणका दर्शन करके स्त्रान करे और उस देशके सफेद आक, लाल कनेर और सपुष्प नीमका गन्ध - पुष्पादिसे पूजन करे । ये तीनों वृक्ष सूर्यनारायणको बहुत प्रिय हैं, अतः इनका पूजन करके व्रत करनेसे सब प्रकारका दुर्भाग्य और दुर्गन्ध सदाके लिये दूर हो जाता है ।

इत्त्थं योऽर्चयते भक्त्या वर्षे वर्षे पृथड् नरः ।

द्रुमत्रयं नृपश्रेष्ठ नारी या भक्तिसंयुता ।

तस्याः शरीरे दुर्गन्धं दौर्भांग्यं च न जायते ॥ ( श्रीकृष्णः )

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Last Updated : January 20, 2009

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