ज्येष्ठ कृष्णपक्ष व्रत - संकष्टचतुर्थीव्रत

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


संकष्टचतुर्थीव्रत ( भविष्योत्तर ) -

ज्येष्ठकृष्णा चतुर्थीको, जे चन्द्रोदयतक रहनेवाली हो, प्रातःस्त्रानादि नित्यकर्म करके व्रतके संकल्पसे दिनभर मौन रहे । सायंकालमें पुनः स्त्रान करके गणेशजीका और चन्द्रोदय होनेपर चन्द्रमाका पूजन करे तथा शङ्खमें दूध, दूर्वा, सुपारी और गन्धाक्षत लेकर

' ज्योत्स्त्रापते नमस्तुभ्यं नमस्ते ज्योतिषां पते । नमस्ते रोहिणीकान्त गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते ॥'

इस मन्त्नसे चन्द्रमाको,

' गौरीसुत नमस्तेऽस्तु सततं मोदकप्रिय । सर्वसंकटनाशाय गृहाणार्य नमोऽस्तु ते ॥'

इस मन्त्रसे गणेशजीको और

' तिथीनामुत्तमे देवि गणेशप्रियवल्लभे । गृहाणार्घ्य मया दत्तं सर्वसिद्धिप्रदायिके ॥'

इस मन्त्रसे चतुर्थीको अर्घ्य दे तथा वायन दान करके भोजन करे ।

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Last Updated : January 17, 2009

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