वैशाख शुक्लपक्ष व्रत - अक्षयतृतीयाव्रत

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


अक्षयतृतीयाव्रत -

इस दिन उपर्युक्त तीनों जयन्तियाँ एकत्र होनेसे व्रतीको चाहिये कि वह प्रातःस्त्रानादिसे निवृत्त होकर ' ममाखिलपापक्षयपूर्वकसकलशुभफलप्राप्तये भगवत्प्रीकामनया देवत्रयपूजनमहं करिष्ये ' ऐसा संकल्प करके भगवानका यथाविधि षोडशोपचारसे पूजन करे । उन्हें पञ्चामृतसे स्त्रान करावे, सुगान्धित पुष्पमाला पहनावे और नैवेद्यमें नर - नारायणके निमित्त सेके हुए जौ या गेहूँका ' सत्तू ', परशुरामके निमित्त कोमल ककड़ी और हयग्रीवके निमित्त भीगी हुई चनेकी दाल अर्पण करे । बन सके तो उपवास तथा समुद्रस्त्रान या गङ्गास्त्रान करे और जौ, गेहूँ, चने, सत्तू, दही - चावल ईखके रस और दुधके बने हुए खाद्य पदार्थ ( खाँड़, मावा, मिठाई आदि ) तथा सुवर्ण एवं जलपूर्ण कलश, धर्मघट, अन्न, सब प्रकारके रस और ग्रीष्म ऋतुके उपयोगी वस्तुओंका दान करे तथा पितृश्राद्ध करे और ब्राह्मणभोजन भी करावे । यह सब यथाशक्ति करनेसे अनन्त फल होता है ।

१. यः पश्यति तृतीयायां कृष्णं चन्दनभूषितम् ।

वैशाखस्य सिते पक्षे स यात्यच्युतमन्दिरम् ॥ ( विष्णुधर्मोत्तरे )

२. युगादौ तु नरः स्त्रात्वा विधिवल्लवणोदधौ ।

गोसहस्त्रप्रदानस्य फलं प्राप्रोति मानवः ॥ ( पृथ्वीचन्द्रोदये सौरपुराणे )

३. यवगोधूमचणकान् सक्तु दध्योदनं तथा ।

इक्षुक्षीरविकाराश्च हिरण्यं च स्वशक्तितः ॥

उदकुम्भान् सरकरकान् सन्नान् सर्वरसैः सह ।

ग्रैष्मिकं सर्वमेवात्र सस्यं दाने प्रशस्यते ॥ ( भविष्योत्तरे )

४. गन्धोदकतिलैर्मिश्रं सान्नं कुम्भं फलान्वितम् ।

पितृभ्यः सम्प्रदास्यामि अक्षय्यमुपतिष्ठतु ॥ ( वि० ध० )

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Last Updated : January 16, 2009

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