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याद

सुमित्रानंदन पंत - याद

ग्रामीण लोगोंके प्रति बौद्धिक सहानुभूती से ओतप्रोत कविताये इस संग्रह मे लिखी गयी है। ग्रामों की वर्तमान दशा प्रतिक्रियात्मक साहित्य को जन्म देती है।


विदा हो गई साँझ, विनत मुख पर झीना आँचल धर,

मेरे एकाकी आँगन में मौन मधुर स्मृतियाँ भर !

वह केसरी दुकूल अभी भी फहरा रहा क्षितिज पर,

नव असाढ़ के मेघों से घिर रहा बराबर अंबर !

मे बरामदे में लेटा, शय्या पर, पीड़ित अवयव,

मन का साथी बना बादलों का विषाद है नीरव !

सक्रिय यह सकरुण विषाद, मेघो से उमड़ उमड़कर

भावी के बहु स्वप्न, भाव बहु व्यथित कर रहे अंतर !

मुखर विरह दादुर पुकारता उत्कंठित भेकी को,

बर्हभार से मोर लुभाता मेघ-मुग्ध केकी को;

आलोकित हा उठता सुख से मेघों का नभ चंचल,

अंतरतम में एक मधुर स्मृति जग जग उठती प्रतिपल !

कंपित करता वक्ष धरा का घन गभीर गर्जन स्वर,

भू पर ही आगया उतर शत धाराओं में अंबर !

भीनी भीनी भाप सहज ही साँसों मे घुलमिल कर

एक और भी मधुर गंध से ह्रदय दे रही है भर !

नव असाढ़ की संध्या मे, मेघों के तम में कोमल,

पीड़ित, एकाकी शय्या पर, शत भावों से विह्वल,

एक मधुरतम स्मृति पल भर विद्युत सी जलकर उज्वल

याद दिलाती मुझे ह्रदय में रहती जो तुम निश्चल !

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References :

कवी - श्री सुमित्रानंदन पंत

जुलाई' ३९

Last Updated : October 11, 2012

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