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राष्ट्र गान

सुमित्रानंदन पंत - राष्ट्र गान

ग्रामीण लोगोंके प्रति बौद्धिक सहानुभूती से ओतप्रोत कविताये इस संग्रह मे लिखी गयी है। ग्रामों की वर्तमान दशा प्रतिक्रियात्मक साहित्य को जन्म देती है।


जन भारत हे !

भारत हे !

स्वर्ग स्तंभवत् गौरव मस्तक

उन्नत हिमवत् हे,

जन भारत हे,

जाग्रत भारत हे !

गगन चुंबि विजयी तिरंग ध्वज

इंद्रचापवत् हे,

कोटि कोटि हम श्रमजीवी सुत

संभ्रम युत नत हे,

सव एक मत, एक ध्येय रत,

सर्व श्रेय व्रत हे,

जन भारत हे !

जाग्रत् भारत हे !

समुच्चरित शत शत कंठों से

जन युग स्वागत हे,

सिन्धु तरंगित, मलय श्वसित,

गंगाजल ऊर्मि निरत हे,

शरद इंदु स्मित अभिनंदन हित,

प्रतिध्वनित पर्वत हे,

स्वागत हे, स्वागत हे,

जन भारत हे,

जाग्रत् भारत हे !

स्वर्ग खंड षड् ऋतु परिक्रमित,

आम्र मंजरित, मधुप गुंजर्ति,

कुसुमित फल द्रुम पिक कल कूजित

उर्वर, अभिमत हे,

दश दिशि हरित शस्य श्री हर्षित

पुलक राशिवत् हे,

जन भारत हे,

जाग्रत भारत हे !

जाति धर्म मत, वर्ग श्रेणि शत,

नीति रीति गत हे

मानवता में सकल समागत

जन मन परिणत हे,

अहिंसास्त्र जन का मनुजोचित

चिर अप्रतिहत हे,

बल के विमुख, सत्य के सन्मुख

हम श्रद्धानत हे,

जन भारत हे,

जाग्रत् भारत हे !

किरण केलि रत रक्त विजय ध्वज

युग प्रभातमत् हे,

कीर्ति स्तंभवत् उन्नत मस्तक

प्रहरी हिमवत् हे,

पद तल छू मत फेनिलोर्मि फन

शेषोदधि नत हे,

वर्ग मुक्त हम श्रमिक कृषक जन

चिर शरणागत हे,

जन भारत हे,

जाग्रत भारत हे !

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References :

कवी - श्री सुमित्रानंदन पंत

जनवरी' ४०

Last Updated : October 11, 2012

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