भजन - गर यारकी मर्जी हुई सर जोड़...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


गर यारकी मर्जी हुई सर जोड़के बैठे ।

घर-बार छुड़ाया तो वहीं छोड़के बैठे ॥

मोड़ा उन्हे जिधर वहीं मुँह मोड़के बैठे ।

गुदड़ी जो सिलाई तो वहीं ओढ़के बैठे ॥

औ शाल उढ़ाई तो उसी शालमें खुश है ।

पूरे हैं वही मर्द जो हर हालमें खुश है ॥१॥

गर खाट बिछानेको मिली खाटमें सोये ।

दूकाँमें सुलाया तो वो जा हाटमें सोये ॥

रस्तेमें कहा सो तो वह जा बाटमें सोये ।

गर टाट बिछानेको दिया टाटमें सोये ॥

औ खाल बिछा दी तो उसी खालमें खुश है ।

पूरे हैं वही मर्द जो हर हालमें खुश है ॥२॥

उनके तो जहाँमें अजब आलम हैं नजीर आह !

अब ऐसे तो दुनियामें वली कम हैं नजीर आह !

क्या जाने, फरिश्ते हैं कि आदम है नजीर आह !

हर वक्तमे हर आनमें खुर्रम हैं नजीर आह !

जिस ढालमें रखा वो उसी ढालमें खुश है ।

पूरे हैं वही मर्द जो हर हालमें खुश है ॥३॥

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Last Updated : December 25, 2007

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