भजन - मूरख , छाड़ि बृथा अभिमान ।...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


मूरख, छाड़ि बृथा अभिमान ।

औसर बीति चल्यो है तेरौ, दो दिनकौ मेहमान ॥

भूप अनेक भये पृथिवीपर, रुप तेज बलवान ।

कौन बच्यो या काल ब्याल तें मिटि गये नाम निसान ॥

धवल धाम धन, गज, रथ, सेना नारी चंद्र समान ।

अंतसमै सबहीकों तजिकै, जाय बसे समसान ॥

तजि सतसंग भ्रमत बिषयनमें, जा बिधि मरकट स्वान ।

छिन भरि बैठि न सुमिरन कीन्हों, जासों होय कल्यान ॥

रे मन मूढ़ अनत जनि भटकै, मेरौ कह्यौ अब मान ।

नारायन ब्रजराज कुँवरसों, बेगहि करि पहिचान ॥

टेर सुनों ब्रजराज-दुलारे ।

दीन मलीन हीन सब गुनते, आय पर्‌यो हौं द्वार तिहारे ॥टेर॥

काम क्रोध अरु कपट मोह, मद, सो जाने निज प्रीतम प्यारे ।

भ्रमत रह्यौं सँग इन बिषयनके, तुव पदकमल न मैं उर धारे ॥१॥

कौन कुकर्म किये नहिं मैंने, जो गये भूल सो लिये उधारे ।

ऐसी खेप भरी रचि पचिकै चकित भये लखिकै बनिजारे ॥२॥

अब तौ एक बार कहौ हँसिके, आजहिते तुम भये हमारे ।

वाहि कृपाते नारायनकी बेगि लगैगी नाव किनारे ॥३॥

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Last Updated : December 24, 2007

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