भजन - लखी जिन लालकी मुसक्यान । ...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


लखी जिन लालकी मुसक्यान ।

तिनहिं बिसरी बेदबिधि, जप, जोग, संयम, ध्यान ॥

नेम, ब्रत, आचार, पूजा, पाठ, गीता-ज्ञान ।

रसिक भागवत दृग दई असि, ऐंचिकै मुख म्यान ॥

परसपर दोउ चकोर दोउ चंदा ।

दोउ चातक, दोउ स्वाती, दोउ घन, दोउ दामिनी अमंदा ॥१॥

दोउ अरबिंद, दोऊ अलि लंपट, दोउ लोहा, दोउ चुंबक ।

दोउ आसिक महबूब दोउ मिलि, जुरे जुराफा अंबक ॥२॥

दोउ मेघ, दोउ मोर, दोउ मृग, दोउ राग-रस-भीने ।

दोउ मनि बिसद, दोउ बर पन्नग, दोउ बारि, दोउ मीने ॥३॥

भगवतरसिक बिहारिनि प्यारी, रसिक बिहारी प्यारे ।

दोउ मुख देखि जियत अधरामृत पियत होत नहिं न्यारे ॥४॥

N/A

References : N/A
Last Updated : December 22, 2007

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP