भजन - चलौ री , मुरली सुनिये ,...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


चलौ री, मुरली सुनिये, कान्ह बजाई जमुना तीर ।

तजि लोकलाज कुलकी कानि गुरुजनकी भीर ॥

जमुनाजल थकित भयो बछा न पीवैं छीर ।

सुरविमान थकित भये थकित कोकिल-कीर ॥

देहकी सुधि बिसरि गई बिसरौ तनकौ चीर ।

मात तात बिसरि गये बिसरे बालक-बीर ॥

मुरली-धुनि मधुर बाजै कैसेकै धरौं धीर ।

सूरदास मदनमोहन जानत हौ परपीर ॥

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Last Updated : December 21, 2007

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