भजन - जय महाराज ब्रजराज -कुल ...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


जय महाराज ब्रजराज-कुल-तिलक

गोबिंद गोपीजनानंद राधारमन ।

नंद-नृप-गेहिनी गर्भ आकर रतन

सिष्‍ट-कष्‍टद धृष्‍ट दुष्‍ट दानव-दमन ॥१॥

बल-दलन-गर्व-पर्वत-बिदारन

ब्रज-भक्त-रच्छा-दच्छ गिरिराजधर धीर ।

बिबिध बेला कुसल मुसलधर संग लै

चारु चरणांक चित तरनि तनया तीर ॥२॥

कोटि कंदर्प दर्पापहर लावन्य धन्य

बृंदारन्य भूषन मधुर तरु ।

मुरलिकानाद पियूषनि महानंदन

बिदित सकल ब्रह्म रुद्रादि सुरकरु ॥३॥

गदाधरबिषै बृष्‍टि करुना दृष्‍टि करु

दीनको त्रिविध संताप ताप तवन ।

मैं सुनी तुव कृपा कृपन जन-गामिनी

बहुरि पैहै कहा मो बराबर कवन ॥४॥

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Last Updated : December 21, 2007

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