भजन - सखी , हौं स्याम रंग रँ...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


सखी, हौं स्याम रंग रँगी ।

देखि बिकाइ गई वह मूरति, सूरति माहि पगी ॥१॥

संग हुतो अपनो सपनो सो, सोइ रही रस खोई ।

जागेहु आगे दृष्‍टि परै सखि, नेकु न न्यारो होई ॥२॥

एक जु मेरी अँखियनमें निसिद्योस रह्यो करि भौन ।

गाइ चरावन जात सुन्यो सखि, सो धौं कन्हैया कौन ॥३॥

कासों कहौं कौन पतियावै, कौन करै बकवाद ।

कैसे कै कहि जात गदाधर, गूँगेको गुड़ स्वाद ॥४॥

N/A

References : N/A
Last Updated : December 21, 2007

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP