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कबहूँ ऐसा बिरह उपावै रे ।...

भजन - कबहूँ ऐसा बिरह उपावै रे ।...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


कबहूँ ऐसा बिरह उपावै रे ।

पिव बिन देऐं जीव जावै रे ॥टेक॥

बिपत हमारी सुनौ सहेली ।

पिव बिन चैन न आवै रे ॥

ज्यों जल मीन भीन तन तलफै ।

पिव बिन बज्र बिहावै रे ॥१॥

ऐसी प्रीति प्रेमको लागै ।

ज्यों पंखी पीव सुनावै रे ॥

त्यों मन मेरा रहै निसबासुर ।

कोइ पीवकूँ आणि मिलावै रे ॥२॥

तौ मन मेरा धीरज धरई ।

कोइ आगम आणि जणावै रे ॥

तौ सुख जीव दादूका पावै ।

पल पिवजी आप दिखावै रे ॥३॥

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Last Updated : September 28, 2008

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