मीराबाई भजन - भाग १

मीराबाई कृष्ण भक्तीमे लीन होनेवाली भारतकी प्रमुख कवयित्री हैं।

Mirabai was a female Hindu poetess whose compositions are popular throughout India.


१.

कान्हा बनसरी बजाय गिरधारी । तोरि बनसरी लागी मोकों प्यारीं ॥ध्रु०॥

दहीं दुध बेचने जाती जमुना । कानानें घागरी फोरी ॥ काना० ॥१॥

सिरपर घट घटपर झारी । उसकूं उतार मुरारी ॥ काना० ॥२॥

सास बुरीरे ननंद हटेली । देवर देवे मोको गारी ॥ काना० ॥३॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरनकमल बलहारी ॥ काना० ॥४॥

२.

हरि गुन गावत नाचूंगी ॥ध्रु०॥

आपने मंदिरमों बैठ बैठकर । गीता भागवत बाचूंगी ॥१॥

ग्यान ध्यानकी गठरी बांधकर । हरीहर संग मैं लागूंगी ॥२॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर । सदा प्रेमरस चाखुंगी ॥३॥

३.

झुलत राधा संग । गिरिधर झूलत राधा संग ॥ध्रु०॥

अबिर गुलालकी धूम मचाई । भर पिचकारी रंग ॥ गिरि० ॥१॥

लाल भई बिंद्रावन जमुना । केशर चूवत रंग ॥ गिरि० ॥२॥

नाचत ताल आधार सुरभर । धिमी धिमी बाजे मृदंग ॥ गिरि० ॥३॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर । चरनकमलकू दंग ॥ गिरि० ॥४॥

४.

कृष्ण करो जजमान ॥ प्रभु तुम ॥ध्रु०॥

जाकी किरत बेद बखानत । सांखी देत पुरान ॥ प्रभु०२॥

मोर मुकुट पीतांबर सोभत । कुंडल झळकत कान ॥ प्रभु०३॥

मीराके प्रभू गिरिधर नागर । दे दरशनको दान ॥ प्रभु०४॥

५.

तुम बिन मेरी कौन खबर ले । गोवर्धन गिरिधारीरे ॥ध्रु०॥

मोर मुगुट पीतांबर सोभे । कुंडलकी छबी न्यारीरे ॥ तुम०॥१॥

भरी सभामों द्रौपदी ठारी । राखो लाज हमारी रे ॥ तुम० ॥२॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर । चरनकमल बलहारीरे ॥ तुम० ॥३॥

६.

हातकी बिडिया लेव मोरे बालक । मोरे बालम साजनवा ॥ध्रु०॥

कत्था चूना लवंग सुपारी बिडी बनाऊं गहिरी ।

केशरका तो रंग खुला है मारो भर पिचकारी ॥१॥

पक्के पानके बिडे बनाऊं लेव मोरे बालमजी ।

हांस हांसकर बाता बोलो पडदा खोलोजी ॥२॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर बोलत है प्यारी ।

अंतर बालक यारो दासी हो तेरी ॥३॥

७.

पग घुंगरू पग घुंगरू बांधकर नाचीरे ॥ध्रु०॥

मैं अपने तो नारायणकी । हो गई आपही दासीरे ॥१॥

विषका प्याला राजाजीनें भेजा । पीवत मीरा हासीरे ॥२॥

लोक कहे मीरा भईरे बावरी । बाप कहे कुलनासीरे ॥३॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर । हरिचरनकी दासीरे ॥४॥

८.

किन्ने देखा कन्हया प्यारा की मुरलीवाला ॥ध्रु०॥

जमुनाके नीर गंवा चरावे । खांदे कंबरिया काला ॥१॥

मोर मुकुट पितांबर शोभे । कुंडल झळकत हीरा ॥२॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर । चरन कमल बलहारा ॥३॥

९.

शाम मुरली बजाई कुंजनमों ॥ध्रु०॥

रामकली गुजरी गांधारी । लाल बिलावल भयरोमों ॥१॥

मुरली सुनत मोरी सुदबुद खोई । भूल पडी घरदारोमों ॥२॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर । वारी जाऊं तोरो चरननमों ॥३॥

१०.

माई मैनें गोविंद लीन्हो मोल ॥ध्रु०॥

कोई कहे हलका कोई कहे भारी । लियो है तराजू तोल ॥ मा० ॥१॥

कोई कहे ससता कोई कहे महेंगा । कोई कहे अनमोल ॥ मा० ॥२॥

ब्रिंदाबनके जो कुंजगलीनमों । लायों है बजाकै ढोल ॥ मा० ॥३॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर । पुरब जनमके बोल ॥ मा० ॥४॥

११.

राधा प्यारी दे डारोजी बनसी हमारी ।

ये बनसीमें मेरा प्रान बसत है वो बनसी गई चोरी ॥१॥

ना सोनेकी बन्सी न रुपेकी । हरहर बांसकी पेरी ॥२॥

घडी एक मुखमें घडी एक करमें । घडी एक अधर धरी ॥३॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर । चरनकमलपर वारी । राधा प्यारी दे० ॥४॥

१२.

मोरे लय लगी गोपालसे मेरा काज कोन करेगा ।

मेरे चित्त नंद लालछे ॥ध्रु० ॥१॥

ब्रिंदाजी बनके कुंजगलिनमों । मैं जप धर तुलसी मालछे ॥२॥

मोर मुकुट पीतांबर शोभे । गला मोतनके माल छे ॥३॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर । तुट गई जंजाल छे ॥४॥

१३.

दीजो हो चुररिया हमारी । किसनजी मैं कन्या कुंवारी ॥ध्रु०॥

गौलन सब मिल पानिया भरन जाती । वहंको करत बलजोरी ॥१॥

परनारीका पल्लव पकडे । क्या करे मनवा बिचारी ॥२॥

ब्रिंद्रावनके कुंजबनमों । मारे रंगकी पिचकारी ॥३॥

जाके कहती यशवदा मैया । होगी फजीती तुम्हारी ॥४॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर । भक्तनके है लहरी ॥५॥

१४.

हरि तुम कायकू प्रीत लगाई ॥ध्रु०॥

प्रीत लगाई पर दुःख दीनो । कैशी लाज न आई ॥ ह० ॥१॥

गोकुल छांड मथुराकु जावूं । वामें कौन बढाई ॥ ह० ॥२॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर । तुमकूं नंद दुवाई ॥ हरि० ॥३॥

१५.

पिहुकी बोलिन बोल पपैय्या ॥ध्रु०॥

तै खोलना मेरा जी डरत है । तनमन डावा डोल ॥ पपैय्या० ॥१॥

तोरे बिना मोकूं पीर आवत है । जावरा करुंगी मैं मोल ॥ पपैय्या० ॥२॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर । कामनी करत कीलोल ॥ पपैय्या० ॥३॥

१६.

चरन रज महिमा मैं जानी । याहि चरनसे गंगा प्रगटी ।

भगिरथ कुल तारी ॥ चरण० ॥१॥

याहि चरनसे बिप्र सुदामा । हरि कंचन धाम दिन्ही ॥ च० ॥२॥

याहि चरनसे अहिल्या उधारी । गौतम घरकी पट्टरानी ॥ च० ॥३॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर । चरनकमलसे लटपटानी ॥ चरण० ॥४॥

१७.

बन्सी तूं कवन गुमान भरी ॥ध्रु०॥

आपने तनपर छेदपरंये बालाते बिछरी ॥१॥

जात पात हूं तोरी मय जानूं तूं बनकी लकरी ॥२॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर राधासे झगरी बन्सी ॥३॥

१८.

लाज रखो तुम मेरी प्रभूजी । लाज रखो तुम मेरी ॥ध्रु०॥

जब बैरीने कबरी पकरी । तबही मान मरोरी ॥ प्रभुजी० ॥१॥

मैं गरीब तुम करुनासागर । दुष्ट करत बलजोरी ॥ प्रभुजी० ॥२॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर । तुम पिता मैं छोरी ॥ प्रभुजी० ॥३॥

१९.

बागनमों नंदलाल चलोरी ॥ अहालिरी ॥ध्रु॥

चंपा चमेली दवना मरवा । झूक आई टमडाल ॥च०॥१॥

बागमों जाये दरसन पाये । बिच ठाडे मदन गोपाल ॥च०॥२॥

मीराके प्रभू गिरिधर नागर । वांके नयन विसाल ॥च०॥३॥

२०.

मोरी आंगनमों मुरली बजावेरे । खिलावना देवूंगी ॥ध्रु०॥

नाच नाच मोरे मन मोहन । मधुर गीत सुनावुंगी ॥२॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । हरिके चरन बल जाऊंगी ॥३॥

२१.

मैंतो तेरे भजन भरोसे अबिनासी ॥ मैतो० ॥ध्रु०॥

तीरथ बरतते कछु नहीं कीनो । बन फिरे हैं उदासी ॥ मैंतो० तेरे ॥१॥

जंतर मंतर कछु नहीं जानूं । बेद पठो नहीं कासी ॥ मैतो० तेरे ॥२॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर । भई चरणकी दासी ॥ मैतो० तेरे ॥३॥

२२.

काना चालो मारा घेर कामछे । सुंदर तारूं नामछे ॥ध्रु०॥

मारा आंगनमों तुलसीनु झाड छे । राधा गौळण मारूं नामछे ॥१॥

आगला मंदिरमा ससरा सुवेलाछे । पाछला मंदिर सामसुमछे ॥२॥

मोर मुगुट पितांबर सोभे । गला मोतनकी मालछे ॥३॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर । चरन कमल चित जायछे ॥४॥

२३.

जमुनाजीको तीर दधी बेचन जावूं ॥ध्रु०॥

येक तो घागर सिरपर भारी दुजा सागर दूर ॥१॥

कैसी दधी बेचन जावूं एक तो कन्हैया हटेला दुजा मखान चोर ॥ कैसा०॥२॥

येक तो ननंद हटेली दुजा ससरा नादान ॥३॥

है मीरा दरसनकुं प्यासी । दरसन दिजोरे महाराज ॥४॥

२४.

कुबजानें जादु डारा । मोहे लीयो शाम हमारारे ॥ कुबजा० ॥ध्रु०॥

दिन नहीं चैन रैन नहीं निद्रा । तलपतरे जीव हमरारे ॥ कुब०॥१॥

निरमल नीर जमुनाजीको छांड्यो । जाय पिवे जल खारारे ॥ कु०॥२॥

इत गोकुल उत मथुरा नगरी । छोड्यायो पिहु प्यारा ॥ कु०॥३॥

मोर मुगुट पितांबर शोभे । जीवन प्रान हमारा ॥ कु०॥४॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर । बिरह समुदर सारा ॥ कुबजानें जादू डारारे कुब०॥५॥

२५.

तोती मैना राधे कृष्ण बोल । तोती मैना राधे कृष्ण बोल ॥ध्रु०॥

येकही तोती धुंडत आई । लकट किया अनी मोल ॥तोती मै०॥१॥

दाना खावे तोती पानी पीवे । पिंजरमें करत कल्लोळ ॥ तो०॥२॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर । हरिके चरण चित डोल ॥ तो० ॥३॥

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Last Updated : February 08, 2008

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