माघ शुक्लपक्ष व्रत - मन्दारषष्ठी

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


मन्दारषष्ठी

( भविष्योत्तर ) - यह व्रत तीन दिनमें पूर्ण होता है । एतन्निमित्त माघ शुक्ल पञ्चमीको सम्पूर्ण कामना त्याग करके जितेन्द्रिय होकर थोडा़ - सा भोजन करके एकभुक्त व्रत करे । षष्ठीको प्रातःस्त्रानादि नित्यकर्म करनेके बाद ब्राह्मणसे आज्ञा लेकर दिनभर व्रत रखे और रात्रि होनेपर केवल मन्दारके पुष्पको भक्षण करके उपवास करे तथा सप्तमीके प्रभातमें पुनः स्त्रान करके ब्राह्मणोंका पूजन करे और मन्दार ( आक ) के आठ पुष्प लाकर ताँबेके पात्रमें काले तिलोंका अष्टदल कमल बनाये । उसकी प्रत्येक कर्णिका ( कली या कोण ) पर एक - एक पुष्प रखे और बीचमें सुवर्णनिर्मित्त सूर्यनारायणकी मूर्ति स्थापित करके - ' भास्कराय नमः ' से पूर्वके, ' सूर्याय नमः ' से अग्निके, ' सूर्याय नमः ' से दक्षिणके, ' यज्ञेशाय नमः ' से नैऋत्यके, ' वसुधाम्रे नमः ' से पश्चिमके, ' चण्डभानवे नमः ' से वायव्यके, ' कृष्णाय नमः ' से उत्तरके और ' श्रीकृष्णाय नमः ' से ईशानके अर्कपुष्पका स्थापन और पूजन करे और पद्मके मध्यमें स्थापित की हुई सुवर्णमूर्तिका ' सूर्याय नमः ' इस मन्त्नसे पूजन करे । तैल तथा लवणवर्जित भोजन करे । इस प्रकार प्रतिज्ञापूर्वक महीने - के - महीने प्रत्येक सप्तमीको वर्षपर्यन्त व्रत करके समाप्तिके दिन कलशपर रक्त सूर्यमूर्ति स्थापितकर पूजन करे और ' नमो मन्दारनाथाय मन्दारभवनाय च । त्वं रवे तारयस्वास्मानस्मात् संसारसागरात् ॥' से प्रार्थना करके सूर्यमूर्ति सुपठित ब्राह्मणको दे तो उसके सब पाप दूर हो जाते हैं और वह स्वर्गमें जाता है ।

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Last Updated : January 01, 2002

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