पार्थिव-पूजन ज्ञातव्य बातें

प्रस्तुत पूजा प्रकरणात भिन्न भिन्न देवी-देवतांचे पूजन, योग्य निषिद्ध फूल यांचे शास्त्र शुद्ध विवेचन आहे.


ज्ञातव्य बातें
(१) शिवकी प्रदक्षिणाके लिये शास्त्रका आदेश है कि इनकी अर्धप्रदक्षिणा करनी चाहिये । आचारेन्दुमें 'अर्ध'क अर्थ -- 'अर्ध सोमसूत्रान्तमित्यर्थ:' 'सोमसूत्रतक' ऐसा किया गया है । 'शिवं प्रदक्षिणीकुर्वन् सोमसूत्रं न लंघयेत्, इति वचनान्तरात् ।'
अपवाद -- तृण, काष्ठ, पत्ता, पत्थर, ईंट आदिसे ढके सोमसूत्रका लंघन किया जा सकता है ।

(२) दुर्गाजीकी एक, सूर्यकी सात, गणेशकी तीन, विष्णुकी चार और शिवकी अर्ध प्रदक्षिणा करनी चाहिये ।

एका चण्डया रवे: सप्त तिस्त्र: कार्या विनायके ।
हरेश्चतस्त्र: कर्तव्या: शिवस्यार्धप्रदक्षिणा ॥
(३)
[क] -- पूजनमें जिस सामग्रीकी कमी हो, उसकी पूर्ति मानसिक भावनासे करनी चहिये -- 'असम्पन्नं मनसा सम्पादयेत् ।' जैसे -- आसनं मनसा परिकल्पयामि, पुष्पमालां मनसा परिकल्पयामि इत्यादि ।
[ख] -- दूसरा विकल्प है, उस-उस सामग्रीके लिये अक्षत-फूल चढ़ा दे जल चढ़ा दे --
तत्तद्‍ द्रव्यं तु संकल्प्य पुष्पैर्वापि समर्चये़त् ।
अर्चनेषु विहीनं यत् तत्तोयेन प्रकल्पयेत् ॥
[ग] -- केवल नैवेद्य चढ़ानेसे अथवा केवल चन्दन, फूल चढ़ानेसे भी पूजा मान ली जाती है ।
'केवलनैवेद्यसमर्पणेनैव पूजासिध्दिरिति ............ ।
गन्धपुष्पसमर्पणमात्रेण पूजासिध्दिरित्यपि पूर्वे ।'

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Last Updated : December 03, 2018

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