पञ्चदेव-पूजन-विधी

प्रस्तुत पूजा प्रकरणात भिन्न भिन्न देवी-देवतांचे पूजन, योग्य निषिद्ध फूल यांचे शास्त्र शुद्ध विवेचन आहे.


गणेश-स्मरण
हाथमें पुष्प-अक्षत आदि लेकर प्रारम्भमें भगवान गणेशजीका स्मरण करना चाहिये-

सुमुखश्र्चैकदन्तश्र्च कपिलो गजकर्णक: ।
लम्बोदरश्र्च विकटो विघ्ननाशो विनायक: ॥
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजानन: ॥
व्दादशैतानि नामानि य: पठेच्छृणुयादपि ॥
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा ।
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ॥

श्रीमन्महागणाधिपतये नम: । लक्ष्मीनारायनाभ्यां नम: । उमामहेश्र्वराभ्यां नम: ।
वाणीहिरण्यर्भाभ्यां नम: । शचीपुरन्दराभ्यां नम: । मातृपितृचरणकमलेभ्यो नम: । इष्टदेवताभ्यो नम: । कुलदेवताभ्यो नम: । ग्रामदेवताभ्यो नम: । वास्तुदेवताभ्यो नम: । स्थानदेवताभ्यो नम: । एतत्कर्मप्रधानदेवताभ्यो नम: । सर्वेभ्यो देवेभ्यो नम: । सर्वेभ्यो नम: । सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नम: ।
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पूजनका संकल्प
सर्वप्रथम पूजनका संकल्प करे-
क) निष्काम संकल्प-
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: अद्य....अहं श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थ विष्णुशिवगणेशसूर्यदुर्गार्चनं करिष्ये ।
ख) सकाम संकल्प-
सर्वाभीष्टस्वर्गापवर्गफ़लप्राप्तिव्दारा श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थ विष्णुशिवगणेशसूर्यदुर्गार्चनं करिष्ये ।
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घण्टा-पूजन-
घण्टको चन्दन और फ़ुलसे अलंकृत कर निम्नलिखित मन्त्र पढकर प्रार्थना करे -
आगमार्थ तु देवानां गमनार्थ च रक्षसाम् ।
कुरु घण्टे वरं नादं देवतास्थानसंनिधौ ॥
प्रार्थनाके बाद घण्टाको बजाये और यथास्थान रख दे ।
’घण्टास्थिताय गरुडाय नम: ।’
इस नाममन्त्रसे घण्टेमें स्थित गरुडदेवका भी पूजन करे ।
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शड्खपूजन-शड्खमें दो दर्भ या दूब, तुलसी और फ़ूल डालकर ॐ कहकर उसे सुवासित जलसे भर दे । इस जलको गायत्री-मन्त्रसे अभिमन्त्रित कर दे । फ़िर निम्नलिखित मन्त्र पढकर शड्खमें तीर्थोका आवाहन करे ।

पृथिव्यां यानि तीर्थानि स्थावराणि चराणि च ।
तानि तीर्थानि शड्खेऽस्मिन् विशन्तु ब्रह्मशासनात् ॥
तब ’शड्खाय नम: , चन्दनं समर्पयामि’ कहकर चन्दन लगाये और शड्खाय नम: , पुष्पं समर्पयामि’ कहकर फ़ूल चढाये । इसके बाद निम्नलिखित मन्त्र पढकर शड्खको प्रणाम करे -
त्वं पुरा सागरोत्पन्नो विष्णुना विधॄत: करे ।
निर्मित: सर्वदेवैश्च पाञ्चजन्य ! नमोऽस्तु ते ॥
प्रोक्षण-शड्खमें रखी हुई पवित्रीसे निम्नलिखित मन्त्र पढकर अपने ऊपर तथा पूजाकी सामग्रियोंपर जल छिडके -
ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
य: स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि: ॥
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उदकुम्भकी पूजा-सुवासित जलसे भरे हुए उदकुम्भ (कलश ) की ’उदकुम्भाय नम:’ इस मन्त्रसे चन्दन, फ़ूल आदिसे पूजा कर इसमें तीर्थोका आवाहन करे -
ॐ कलशस्य मुखे विष्णु: कण्ठे रुद्र: समाश्रित: ।
मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणा: स्मृता: ॥
कुक्षौ तु सागरा: सर्वे सप्तव्दीपा वसुन्धरा ।
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेद: सामवेदो ह्यथर्वण: ॥
अन्गैश्च सहिता: सर्वे कलशं तु समाश्रिता: ।
अत्र गायत्री सावित्री शान्ति: पुष्टिकरी तथा ॥
सर्वे समुद्रा: सरितस्तीर्थानि जलदा नदा: ।
आयान्तु देवपूजार्थ दुरितक्षयकारका: ॥
गन्डे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु ॥

इसके बाद निम्नलिखित मन्त्रसे उद्कुम्भकी प्रार्थना करे -
देवदानवसंवादे मथ्यमाने महोदधौ ।
उत्पन्नोऽसि तदा कुम्भ ! विधृतो विष्णुना स्वयम् ॥
त्वत्तोये सर्वतीर्थानि देवा: सर्वे त्वयि स्थिता: ।
त्वयि तिष्ठान्ति भूतानि त्वयि प्राणा: प्रतिष्ठिता: ॥
शिव: स्वयं त्वमेवासि विष्णुस्त्वं च प्रजापति: ।
आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवा: सपैतृका: ।
त्वयि तिष्ठान्ति सर्वेऽपि यत: कामफ़लप्रदा: ।
त्वत्प्रसादादिमं यज्ञं कर्तुमीहे जलोभ्दव !
सांनिध्यं कुरु मे देव प्रसन्नो भव सर्वदा ॥
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अब पञ्चदेवोंकी पूजा करे । सबसे पहले ध्यान करे -

विष्णुका ध्यान
उद्यत्कोटिदिवाकराभमनिशं शड्खं गदां पड्कजं
चक्रं बिभ्रतमिन्दिरावसुमतीसंशोभिपार्श्वव्दयम् ।
कोटीराड्गद्हारकुण्डलधरं पीताम्बरं कौस्तुभै -
र्दीप्तं विश्वधरं स्ववक्षसि लसच्छीवत्सचिह्रं भजे ॥
ध्यानार्थे अक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ॐ विष्णवे नम: ।
उदीयमान करोडो सूर्यके समान प्रभातुल्य, अपने चारों हाथोंमें शड्ख गदा, पद्म तथा चक्र धारण किये हुए एवं दोनों भागोंमें भगवती लक्ष्मी और पृथ्वीदेवीसे सुशोभित, किरीट, मुकुट, केयूर,हार और कुण्डलोंसे समलड्कृत कौस्तुभमणि तथा पीताम्बरसे देदीप्यमान विग्रहयुक्त एवं वक्ष:स्थलपर श्रीवत्सचिह्र धारण किये हुए भगवान विष्णुका मैं निरन्तर स्मरण-ध्यान करता हूँ ।
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शिवका ध्यान
ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं
रत्नाकल्पोज्ज्वलांगं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम् ।
पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं
विश्वाद्यं विश्वबीजं निखिलभयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम् ॥

ध्यानार्थे अक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ॐ शिवाय नम: ।

चाँदीके पर्वतके समान जिनकी श्वेत कान्ति है, जो सुन्दर चन्द्रमाको आभूषण-रुपसे धारण करते है, रत्नमय अलड्कारोंसे जिनका शरीर उज्वल है, जिनके हाथोंमें परशु, मृग, वर और अभय मुद्रा है, जो प्रसन्न है, पद्मके आसनपर विराजमान है, देवतागण जिनके चारों ओर खडे होकर स्तुति करते है, जो बाघकी खाल पहनते है, जो विश्वके आदि जगत्‍की उत्पत्तिके बीज और समस्त भयोंको हरनेवाले है, जिनके पाँच मुख और तीन नेत्र है, उन महेश्वरका प्रतिदिन ध्यान करे ।
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गणेशका ध्यान
खर्वं स्थूलतनुं गजेन्द्रवदनं लम्बोदरं सुन्दरं
प्रस्यन्दन्मदगन्धलुब्धमधुपव्यालोलगण्डस्थलम् ।
दन्ताघातविदारितारितारिरुधिरै: सिन्दूरशोभाकरं
वन्दे शैलसुतासुतं गणपति सिध्दिप्रदं कामदम ॥
ध्यानार्थ अक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ॐ श्रीगनेशाय नम: ।

जो नाटे और मोटे शरीरवाले है, जिनका गजराजके समान मुख और लम्बा उदर है, जो सुन्दर है तथा बहते हुए मदकी सुगन्धके लोभी भौरोंके चाटनेसे जिनका गण्डस्थल चपल हो रहा है, दातोंकी चोटसे विदीर्ण हुए शत्रुओंके खूनसे जो सिन्दुरकी-सी शोभा धारण करते है, कामनाओंके दाता और सिध्दि देनेवाले उन पार्वतीके पुत्र गणेशजींका मै वन्दना करता हूँ ।
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सूर्यका ध्यान
रक्ताम्बुजासनमशेषगुणैकसिन्धुं
भानुं समस्तजगतामधिपं भजामि ।
पद्मव्दयाभयवरान् दधतं कराब्जै-
र्माणिक्यमौलिमरुणांरुचिं त्रिनेत्रम् ॥
ध्यानार्थ अक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ॐ श्रीसूर्याय नम: ।

लाल कमलके आसनपर समासीन, सम्पूर्ण गुणोंके रत्नाकर, अपने दोनों हाथोंमें कमल और अभयमुद्रा धारण किये हुए, पद्मराग तथा मुक्ताफ़लके समान सुशोभित शरीरवाले, अखिल जगतके स्वामी, तीन नेत्रोंसे युक्त भगवान सूर्यका मै ध्यान करता हुँ ।
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दुर्गाका ध्यान
सिंहस्था शशिशेखरा मरकतप्रख्यैश्चतुर्भिर्भुजै:
शड्ख चक्रधनु:शरांश्च दधती नेत्रैस्त्रिभि: शोभिता ।
आमुक्ताड्गदहारकड्कणरणत्काञ्चीरणन्नूपुरा
दुर्गा दुर्गतिहारिणी भवतु नो रत्नोल्लसत्कुण्डला ॥
ध्यानार्थे अक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ॐ श्रीदुर्गायै नम: ।

जो सिंहकी पीठपर विराजमान है, जिनके मस्तकपर चन्द्रमाका मुकुट है, जो मरकतमणिके समान कान्तिवाली अपनी चार भुजाओंमें शड्ख, चक्र, धनुष और बाण धारण करती है, तीन नेत्रोंसे सुशोभित होती है, जिनके भिन्न-भिन्न अड्ग बाँधे हुए बाजुबंद, हार, कड्कण, खनखनाती हुई करधनी और रुनझुन करते हुए नूपुरोंसे विभूषित है तथा जिनके कानोंमें रत्नजटित कुण्डल झिलमिलाते रहते है, वे भगवती दुर्गा हमारी दुर्गति दूर करनेवाली हो ।

अब हाथमें फ़ुल लेकर आवाहन के लिये पुष्पाञ्जलि दे ।
पुष्पाञ्जलि-ॐ विष्णुशिवगणेशसूर्यदुर्गाभ्यो नम: , पुष्पाञ्जलि समर्पयामि ।’
यदि पञ्चदेवकी मुर्तियाँ न हो तो अक्षतपर इनका आवाहन करे । मन्त्र नीचे दिया जाता है । निम्न कोष्ठकके अनुसार देवताओंको स्थापित करे -

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Last Updated : December 02, 2018

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