पूजन-सम्बन्धी जानने योग्य कुछ आवश्यक बाते

प्रस्तुत पूजा प्रकरणात भिन्न भिन्न देवी-देवतांचे पूजन, योग्य निषिद्ध फूल यांचे शास्त्र शुद्ध विवेचन आहे.


यहाँ सर्वप्रथम पूजन-सम्बन्धी कुछ ज्ञातव्य बातोंका निर्देश किया जा रहा है ।
पञ्चदेव -
आदित्यं गणनाथं च देवी रुद्रं च केशवम् ।
पञ्चदैवत्यमित्युक्तं सर्वकर्मसु पूजयेत ॥
सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव, विष्णु-ये पञ्चदेव कहे गये है । इनकी पूजा सभी कायोंमें करनी चाहिये ।
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अनेक देवमूर्ती-पूजा-प्रतिष्ठा-विचार-
एका मूर्तिर्न सम्पूज्या गृहिणा स्वेष्टमिच्छ्ता ।
अनेकमूर्तिसम्पन्न: सर्वान् कामानवाप्नुयात् ॥
कल्याण चाहनेवाले गृहस्थ एक मूर्तिकी ही पूजा न करे, किंतु अनेक देवमूर्तिकी पूजा करे, इससे कामना पूरी होती है ।
किंतु -
गृहे लिन्ड्व्दयं नार्च्य गणेशत्रितयं तथा ।
शंखव्दयं तथा सूर्यो नार्च्यो शक्तित्रयं तथा ॥
व्दे चक्रे द्वारकायास्तु शालग्रामशिलाव्दयम् ।
तेषां तु पूजनेनैव उव्देगं प्राप्नुयाद्‍ गृही ॥

घरमें दो शिवलिंग, तीन गणेश, दो शंख, दो सूर्य, तीन दुर्गामूर्ति, दो गोमतीचक्र और दो शालग्रामकी पूजा करनेसे गृहस्थ मनुष्यको अशान्ति होती है ।

शालग्रामशिलायास्तु प्रतिष्ठा नैव विद्यते ।
शालग्रामकी प्राणप्रतिष्ठा नही होती ।

बाणलिन्गानि राजेन्द्र ख्यातानि भुवनत्रये ।
न प्रतिष्ठा न संस्कारस्तेषां नावाहनं तथा ॥

बाणलिन्ग तीनों लोकोंमें विख्यात है, उनकी प्राणप्रतिष्ठा, संस्कार या आवाहन कुछ भी नही होता ।

शैलीं दारुमयी हैमीं धात्वाद्याकारसम्भवाम् ।
प्रतिष्ठां वै प्रकुर्वीत प्रासादे वा गृहे नृप ॥

पत्थर, काष्ठ, सोना या अन्य धातुओंकी मूर्तियोंकी प्रतिष्ठा घर या मन्दिरमें करनी चाहिये ।

गृहे चलार्चा विज्ञेया प्रासादे स्थिरसंज्ञिका ।
इत्येते कथिता मार्गा मुनिभि: कर्मवादिभि: ॥

घरमें चल प्रतिष्ठा और मन्दिरमें अचल प्रतिष्ठा करनी चाहिये । यह कर्मज्ञानी मुनियोंका मत है ।

गन्गाप्रवाहे शालग्रामशिलायां च सुरार्चने ।
द्विजपुन्गव ! नापेक्ष्ये आवाहनविसर्जने ॥
शिवलिन्गेऽपि सर्वेषां देवानां पूजनं भवेत् ।
सर्वलोकमये यस्माच्छिवशक्तिर्विभु: प्रभु: ॥
गन्गाजीमें, शालग्रामशिलामें तथा शिवलिन्गमें सभी देवताओंका पूजन बिना आवाहन-विसर्जन किया जा सकता है ।
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पाँच उपचार-१. गन्ध, २. पुष्प ३. धुप ४. दीप और ५. नैवेद्य ।
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दस उपचार-१.पाद्य, २.अर्घ्य, ३.आचमन, ४.स्नान, ५.वस्त्र-निवेदन, ६-गन्ध, ७.पुष्प, ८.धूप ९.दीप और १०.नेवेद्य।
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सोलह उपचार- १. पाद्य, २. अर्घ्य, ३. आचमन, ४. स्नान, ५. वस्त्र, ६. आभूषण ७. गन्ध, ८. पुष्प, ९. धूप, १०. दीप, ११. नैवेद्य, १२. आचमन, १३. ताम्बूल, १४. स्तवपाठ, १५. तर्पण और १६. नमस्कार ।
फूल तोडनेका मंत्र-
प्रातःकालिन स्नानादि कृत्योंके बाद देव-पूजाका विधान है । एतदर्थ स्नानके बाद तुलसी , बिल्वपत्र, और फ़ुल तोडने चाहिये । तोडनेसे पहले हाथ-पैर धोकर आचमन कर ले । पूरबकी और मुँहकर हाथ जोडकर मन्त्र बोले -
मा नु शोकं कुरुष्व त्व स्थानत्यागं च मा कुरु ।
देवतापूजनार्थाय प्रार्थयामि वनस्पते ॥
पहला फ़ुल तोडते समय ’ॐ वरुणाय नम:’ दुसरा फ़ुल तोडते समय ’ॐ व्योमाय नम:’ और तीसरा फ़ूल तोडते समय ’ॐ पृथिव्यै नम: ’ बोले ।
तुलसीदल-चयन-
स्कन्द्पुराणका वचन है कि जो हाथ पूजार्थ तुलसी चुनते है, वे धन्य है -

तुलसीं ये विचिन्वन्ति धन्यास्ते करपल्लवः ।

तुलसीका एक-एक पत्ता न तोडकर पत्तियोंके साथ अग्रभागको तोडना चाहिये । तुलसीकी मञ्जरी सब फ़ुलोंसे बढकर मानी जाती है । मञ्जरी तोडते समय उनमें पत्तियोंका रहना भी आवश्यक माना गया है । निम्नलिखित मन्त्र पढकर पूज्यभावसे पौधेको हिलाये बिना तुलसीके अग्रभागको तोडे । इससे पूजाका फल लाख गुना बढ जाता है ।
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तुलसी-दल तोडनेके मन्त्र -
तुलस्यमृतजन्मासि सदा त्वं केशवप्रिया ।
चिनोमि केशवस्यार्थे वरदा भव शोभने ॥
त्वदन्गसम्भवै: पत्रै: पूजयामि यथा हरिम् ॥
तथा कुरु पवित्रान्गि ! कलौ मलविनाशिनि ॥
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तुलसीदल-चयनमें निषिध्द समय -
वैधृति और व्यतीपात-
इन दो योगोंमें, मंगल, शुक्र और रवि-इन तीन वारोंमें, व्दादशी, अमावस्या एवं पूर्णिमा-इन तीन तिथियोंमें, संक्रान्ति और जननाशौच तथा मरणाशौचमें तुलसीदल तोडना मना है । संक्रान्ति, अमावास्या, व्दादशी, रात्रि और दोंनों संध्यायोंमें भी तुलसीदल न तोडे, किंतु तलसीके बिना भगवान्‍की पूजा पूर्ण नही मानी जाती, अत: निषिध्द समयमें तुलसीवृक्षसे स्वयं गिरी हुई पत्तीसे पूजा करे, ( पहले दिनके पवित्र स्थानपर रखे हुए तुलसीदलसे भी भगवान्‍की पूजा की जा सकती है) शालग्रामकी पूजाके लिये निषिध्द तिथियोंमें भी तुलसी तोडी जा सकती है । बिना स्थानके और जूता पहनकर भी तुलसी न तोडे ।
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बिल्वपत्र तोडनेका मन्त्र -
अमृतोद्भव ! श्रीवृक्ष ! महादेवप्रिय: सदा ।
गृह्रामि तव पत्राणि शिवपूजार्थमादरात् ।

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बिल्वपत्र तोड्नेका निषिध्द काल-चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या तिथियोंको, संक्रान्तिके समय और सोमवारको बिल्वपत्र न तोडे । किंतु बिल्वपत्र शन्करजीको बहुत प्रिय है, अंत: निषिध्द समयमें पहले दिनका रखा विल्वपत्र चढाना चाहिये ।शात्रने तो यहातक कहा है कि यदि नूतन बिल्वपत्र न मिल सके तो चढाये हुए बिल्वपत्रको ही धोकर बार-बार चढता रहे ।
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बासी जल, फ़ुलका निषेध-
जो फ़ूल, पत्ते और जल बासी हो गये हो, उन्हे देवताओंपर न चढाये । किंतु तुलसीदल और गन्गाजल बासी नही होते । तीर्थोका जल भी बासी नही होता । वस्त्र, यज्ञोपवीत और आभूषणमें भी निर्माल्यका दोष नही आता ।
मालीके घरमें रखे हुए फ़ुलोंमें बासी दोष नही आता । दौना तुलसीकी ही तरह एक पौधा होता है । भगवान विष्णुको यह बहुत प्रिय है। स्कन्दपुराणमें आया है कि दौनाकी माला भगवान्‍को इतनी प्रिय है कि वे इसे सूख जानेपर भी स्वीकार कर लेते है । मणि, रत्न, सुवर्ण, वस्त्र आदिसे बनाये गये फ़ूल बासी नही होते । इन्हे प्रोक्षण कर चढाना चाहिये ।
नारदजीने ’मानस’ ( मनके व्दारा भावित ) फ़ुलको सबसे श्रेष्ठ फ़ूल माना है । उन्होंने देवराज इन्द्रको बतलाया है कि हजारों-करोंडों बाह्य फ़ूलोंको चढाकर जो फ़ल प्राप्त किया जा सकता है, वह केवल एक मानस-फ़ूल चढानेसे प्राप्त हो जाता है । इससे मानस-पुष्प ही उत्तम पुष्प है । बाह्य पुष्प तो निर्माल्य भी होते है । मानस-पुष्पमें बासी आदि कोई दोष नही होता । इसलिये पूजा करते समय मनसे गढकर फूल चढानेका अद्भुत आनन्द अवश्य प्राप्त करना चाहिये ।
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सामान्यतया निषिध्द फ़ुल-
यहाँ उन निषेधोंको दिया जा रहा है जो सामान्यतया सब पूजामें सब फ़ुलोंपर लागू होते है । भगवान्‍पर चढाया हुआ फ़ुल ’निर्माल्य’ कहलाता है, सूँघा हुआ या अन्गमें लगाया हुआ फ़ुल भी इसी कोटिमें आता है । इन्हें न चढाये । भौरेके सूँघनेसे फ़ूल दूषित नही होता । जो फ़ूल अपवित्र बर्तनमें रख दिया गया हो, अपवित्र स्थानमें उत्पन्न हो, आगसे झुलस गया हो, कीडोंसे विध्द हो, सुन्दर न हो, जिसकी पंखुडियाँ बिखर गयी हो, जो पृथ्वीपर गिर पडा हो, जो पूर्णत: खिला न हो, जिसमें खट्टी गंध या सडाँध आती हो, निर्गन्ध हो या उग्र गन्धवाला हो, ऐसे पुष्पोंको नही चढाना चाहिये । जो फ़ूल बाये हाथ, पहननेवाले अधोवस्त्र, आक और रेडके पत्तेमें रखकर लाये गये हो, वे फ़ूल त्याज्य है । कलियोंको चढाना मना है, किंतु यह निषेध कमलपर लागू नही है । फ़ूलको जलमें डुबाकर धोना मना है। केवल जलसे इसका प्रोक्षण कर देना चाहिये ।
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पुष्पादि चढानेकी विधी-
फूल, फ़ल और पत्ते जैसे उगते है, वैसे ही इन्हे चढाना चाहिये । उत्पन्न होते समय इनका मुख ऊपरकी ओर होता है, अत:  चढाते समय इनका मुख ऊपरकी ओर ही रखना चाहिये । इनका मुख नीचेकी ओर न करे । दूर्वा एवं तुलसीदलको अपनी ओर और बिल्वपत्र नीचे मुखकर चढाना चाहिये । इनसे भिन्न पत्तोंको ऊपर मुखकर या नीचे मुखकर दोनों ही प्रकारसे चढाना जा सकता है । दाहिने हाथके करतलको उत्तान कर मध्यमा, अनामिका और अँगूठेकी सहायतासे फ़ूल चढाना चाहिये ।

उतारनेकी विधि :- चढे हुए फ़ुलको अँगूठे और तर्जनीकी सहायतासे उतारे ।

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Last Updated : December 02, 2018

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