प्रात:काल ब्रम्हरुपा गायत्रीमाताका ध्यान

प्रस्तुत पूजा प्रकरणात भिन्न भिन्न देवी-देवतांचे पूजन, योग्य निषिद्ध फूल यांचे शास्त्र शुद्ध विवेचन आहे.


ॐ बालां विद्दां तु गायत्रीं लोहितां चतुराननाम्।
रक्ताम्बरव्दयोपेतामक्षसूत्रकरां तथा॥
कमण्डलुधरां देवी हंसवाहनसंस्थिताम्।
ब्रम्हाणीं ब्रह्मदैवत्यां ब्रह्मलोकनिवासिनीम्॥
मन्त्रेणावाहयेद्देवीमायान्तीं सूर्यमण्डलात्।

’भगवती गायत्रीका मुख्य मन्त्रके व्दारा सूर्यमण्डलसे आते हुए इस प्रकार ध्यान करना चाहिये कि उनकी किशोरावस्था है और वे ज्ञानस्वरुपिणी है। वे रक्तवर्णा एवं चतुर्मुखी है। उनके उत्तरीय तथा मुख्य ज्ञानस्वरुपिणी है। वे रक्तवर्णा एवं चतुर्मुखी है। उनके उत्तरीय तथा मुख्य परिधान दोनों ही रक्तवर्णके है। उनके हाथमें रुद्राक्षकी माला है। हाथमें कमण्डलु धारण किये वे हंसपर विराजमान है। वे सरस्वती-स्वरुपा है, ब्रम्हलोकमें निवास करती है और ब्रम्हाजी उनके पतिदेवता है।

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Last Updated : November 27, 2018

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