स्नानांग-तर्पण

प्रस्तुत पूजा प्रकरणात भिन्न भिन्न देवी-देवतांचे पूजन, योग्य निषिद्ध फूल यांचे शास्त्र शुद्ध विवेचन आहे.


गंगादि तीर्थोंमें स्नानके पश्चात् स्नानांग-तर्पण करे । संध्याके पहले इसका करना आवश्यक माना गया है । यही कारण है कि अशौचमें भी इसका निषेध नहीं होता तथा जीवित-पितॄकोंके लिये भी यह विहित है । जीवित-पितृकोंके लिये भी विहित है ।    जीवित-पितृकोंके लिये केवल इसका अन्तिम अंश त्याज्य होता है, जिसका आगे कोष्ठकमें निर्देश कर दिया गया है । इसमें तिलक जलसे ही किया जाता है । बायें हाथमें जल लेकर दाहिने अँगूठेसे ऊर्ध्वपुण्ड्र कर ले । तदनन्तर तीन अंगुलियोसे त्रिपुण्ड करे ।
जलांजलि देनेकी रीति यह है कि दोनों हाथोंको सटाकर अञ्जलि बना ले । इसमे जल भरकर गौके सींग-जितना ऊँचा उठाकर जलमेंही अञ्जलि छोड़ दे । इसमे देव ऋषि, पितर एवं अपने पिता, पितमह आदिका तर्पण होता है ।

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Last Updated : November 25, 2018

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