संत श्रीरोहिदासांची पदे - २२ ते २६

संत रोहिदास (इ.स. १३७६ - इ.स. १५२७) हे मध्ययुगीन भारतातील हिंदू संत होते. यांच्या गुरूंचे नाव रामानंद स्वामी होते. कबीर यांचे समकालीन होत; तर मीराबाई यांच्या शिष्या होत्या.


मल्हार
२२.
मिलत पियारो प्राननाथ कवनि भगति । साध - संगति पाई परम गति ॥ मैले कपरे कहॉं लउ धोवउ । आवैगी नींद कहॉं लउ सोवउं ॥ जोई - जोई जोर्‍यो सोई - सोई फाट्यो । झूठै बनजि उठि ही गई हाट्यो ॥ कहि रविदास भयो जब लेख्यो । जोई - जोई कीन्यो सोई - सोई देख्यो ॥

राग केदार
२३.
कहु मन राम नाम सॅंभारि । माया के भ्रम कहा भूल्यो, जाहुगे कर झारि ॥टेक॥ देखि धौं इहॉं कौन तेरो, सगा सुत नहिं नारि । तोरि उतॅं सब दूरि करिहैं, देहिंग तन जारि ॥१॥
प्रान गये कहों कौन तेरा, देखि सोच बिचारि । बहुरि योहि कलि काल नहीं, जीति भावै हारि ॥२॥
हौ माया सब थोथरी रे, भगति दिस प्रतिहारि । कह रैदास सत बचन गुरुके, सों जिव ते न बिसारि ॥३॥

२४.
चल मन हरि चटसाल पढाऊं ॥टेक॥ गुरु की साटि ज्ञान का अच्छर । बिसरै तो सहज समाधि लगाऊं ॥१॥
प्रेम की पाटी सुरति की लेखनि । ररौ ममौ लिखि ऑंक लखाऊं ॥२॥
येहि बिधि मुक्त भये सनकादिक हृदय बिचार प्रकास दिखाऊं ॥३॥
कागद कॅंवल मति मसि करि निर्मल । बिन रसना निसदिन गुन गाऊं ॥४॥
कह रैदास राम भजु भाई । संत साखि दे बाहुरि न आऊं ॥५॥

राग कानडा
२५.
माया मोहिला कान्हा, मैं जन सेवक तेरा ॥टेक॥ संसार प्रपंच मैं व्याकुल परमानंदा । त्राहि त्राहि अनाथ गोबिंदा ॥१॥
रैदास बिनवै कर जोरीं । अबिगत नाथ कवन गति मोरी ॥२॥

राग सारंग
२६.
जग में वेद बैद मानीजै । इनमें और अकथ कुछु औरे, कही कोन परि कीजै ॥टेक॥ भौजल ब्याधि असाधि प्रबल अति, परम पंथ न गहीजै ॥१॥
पढे - गुने कछु समुझि न परई, अनुभवपद न लहीजै ॥२॥
चखबिहीन कर तारि चलतु हैं, तिनहिं न अस भुज दीजै ॥३॥
कह रैदास बिवेक तत्त बिनु, सब मिलि नरक परीजै ॥४॥

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Last Updated : December 23, 2016

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