( राग - केदार; ताल - दीपचंदी )
दुनिया दो दिनकी है रे । जाना अखेर है रे जाना अखेर ।
जाते वखत आलम होता है जेर । आलम होता है जेर ॥ध्रु.॥
येकसकुं हुक्म होते हाल । होत हाल बेहाल ।
नजरों देखते गाफिल क्यौं खुसीहाल । गा. ॥१॥
हजरा हजीर तुम देखतो यारा तुम. । दुनिया किसकी तुम दुनियादारा तुम. ॥२॥
बंदेकमीन बंदा कहता सुनो रे । अकलबंदोकी अकल दिलमें चुनो रे । अ. ॥३॥


( राग - भैरव; ताल - धुमाळी )
जानि दिवानी रे बाबा जानि. ॥ध्रु.॥
भली न माने बुरी न माने । बात गुमानी रे ॥१॥
जानीमें जन अकल गवावे । जिकिर न मानी रे ॥२॥
दास फकीर कहे मन धीर । अखबत मानी रे ॥३॥


( राग - खमाज; ताल - दीपचंदी )
काय भुल्यो संसार मन रे. ।
एकेक घरी मोलकी जावे । भूली रह्यो गव्हार ॥ध्रु.॥
धन जोबनका संग पकरी । ये कौ नहीं उतरे पार ॥
जानत जानत मुरख भयो है । केता कहूं बारेंबार ॥१॥
जाकू जोब ताकू भेद भयो रे । भोंदत है दिन दिन ॥
विख दिखायके न गवाये । अंतकाल होये खीन ॥२॥
रामदास कहे एक रामबिन । कोऊ पर उतारे ॥
ऐसा जानके सुचित रहिये । सबहि भोंदु तियारे ॥३॥


( राग - काफी; ताल - दीपचंदी )
संग न कीजे हो, मुरखको. ॥ध्रु.॥
तनमन लावे रंग जगावे । अंत न दीजे हो ॥१॥
रामदासको नीको बंदा । मनमें लीजे हो ॥२॥


( राग - पहाडी; ताल - दीपचंदी )
कोऊ न आवे साथ, रामबिन कोऊ. ॥ध्रु.॥
ये है मेरा वह मेरा ऐसी । झूटि हय सब बात ॥१॥
जो कछु है सो झूटा है रे । दो दीनका सांगात ॥२॥
दास कहे जन सुन हा चातुर । छोरी अकेला जात ॥३॥


( राग - मुलतानी; ताल दादरा. )
न करीं मन राम सुमकरी । इतनी सुनुज्य है सारी ॥ध्रु.॥
सब लोकन सुकरी सोकरी । अब धर लाज थोरी ॥१॥
अबलग ये धरी धरीरी । अजहु तनकी कृपा जारी ॥२॥
रामदास कहे धरी ही धरी । रघुसये बात बुरी ॥३॥


( राग - सिंधकाफी; ताल - दादरा. )
राम न जाने नर जिया तो क्यां जी ॥ध्रु.॥
धन दौलत सब माल खजीना । और मुलुख सर किया तो क्यां जी ॥१॥
गंगा गोमति रेवा तापी । और बनारस न्हाया तो क्यां जी ॥२॥
गोकुल मथुरा मधुवन द्वारका । और अयोध्या कर आया तो क्यां जी ॥३॥
दर्वेश शवडा जंगम जोगी । और कानफाडी हुवा तो क्यां जी ॥४॥
आत्मज्ञान की खबर न जाने । और ध्यानन बक हुवा तो क्यां जी ॥५॥
बेद पुरानकी चर्चा घनी हय । और शास्तर पढ आया तो क्यां जी ॥६॥
रामदासप्रभु आत्मरघूविर । इद नयन नहिं छाया तो क्यां जी ॥७॥


( राग - काफी; ताल - दादरा. )
बंद बाजी सब लोक राजी ।
रोटी ताजी दुनिया नवाजी । बोले काजी पैंगबर गाजी ॥ध्रु.॥
खबर्दारी अकल हय सारी । बेहुषारी गाफिलकी यारी । उमर सारी होतसे खोरी ॥१॥
खावे खिलावे देवे दिलावे । सुने सुनावे पोंचे पोंचावे ।
अकलसु जावे सो बंद भावे ॥२॥


( राग - कल्याण; ताल - त्रिताल )
नाथजुकी है संपत्ति । नाथजुकी. ॥ध्रु.॥
मेरि मेरि कर भूलि परी रे । सबही जातु रही रे ॥१॥
तेरो तो यहां कछु नहीं रे । रामदास कहे ॥२॥

१०
( राग - काफी; ताल - दीपचंदी; चाल - आनंदरूप वनारी )
दरदबिन कौ नहिं रे ॥ध्रु.॥
देवमुनिवर दानवमानव । किन्नर अपसर रे ॥१॥
ये खेचर भूचर जलचर वनचर । नृपवर किंकर हो ॥२॥
जनम सुखदुखमिश्रित है सो । दास कहे सब जानी ॥३॥

११
( राग - असावरी; ताल - त्रिताल; चाल - धन्य हरीजन. )
जनहरा समजनहारा ॥ समजनहारा पियारा ॥ध्रु.॥
पीर मुरीद क्या गैबी बाता मर्द समजावे ॥
पीर बिना सब गोते - खाते अकेली आवे ना ज्यावे ॥१॥
अव्वल अखेर होते जाते समजत है सो सारा ॥
हिंदु मुसलमान मुसमे होते सबही मरत जाते ॥२॥
माहल मुलुक गुमरु भयो तो अखैर गोते खाते ॥
अकल कोती उमर कोती गैबी समजत नहीं ॥३॥
दो दिनका संसार समज ले कुफराना सब जाता ॥
अल्लामियासो जाता नहीं रे उस क्या कहे कछु बाता ॥४॥
हिंदु मुसलमान चामके पुतले गैब चलावनहारा ॥
बंदे कमीन कहे समजे सो अल्लामियाका प्यारा ॥५॥

१२
( राग - काफी; ताल - दीपचंदी. )
घटघट सांहीया ये । अजब अलामिया रे ॥ध्रु.॥
ये हिंदुमुसलमाना दोन्हो चलावे । पछाने सो भावे ॥१॥
सुरिजनहार बडा करताहे । कोइ एक जाने पार ॥२॥
अवल अखैर समज दिवाने । अकलबंद पछाने ॥३॥
गरिबनवाज बडा धनी है । बंदेकमीन कमीन ॥४॥

१३
( राग व ताल - वरील )
जिकिर खुदाकी रे बाबा जिकिर. ॥ध्रु.॥
चंद्रसुभान जुमिन् असमान् । सब ही ताकी रे ॥१॥
खावे खिलावे देवे दिलावे । सब दील पाखी रे ॥२॥
कहते फकीर करो जन पीर । आकल जाकी रे ॥३॥

१४
( राग - काफी; ताल - दादरा. )
राजी राखो रे आलम राजी राखो रे ॥ध्रु.॥
मरणा हक जीवणा उधार ॥ जाते नहीं बार ॥१॥
दुनिया दौलत हत्ती घोरे ॥ मौते वखत सब छोरे ॥२॥
हक खुदा समजे सो बंदा ॥ गुमरु तो सब गंदा रे ॥३॥

१५
( राग - काफी; ताल - दीपचंदी. )
हक इलाही रे भाई ॥ध्रु.॥
मुलाणा सोहि मुलाणा । हक्क चले सो काजी ॥१॥
नाहक है सो दूरि करेगा । उसकू आलम राजी ॥२॥
बंदा कव्हावे तो हक होणा । हक्क सुभिस्तकु ज्याणा ॥३॥
नाहक दो जेक छोरि देणा । कहते किताब कुराणा ॥४॥

१६
( राग - कानडा; ताल - पंचाबी )
कछु एक अजब है रे ॥ध्रु.॥
अकल कमाखल फरक परोरी । जानता जानत हरी ॥१॥
समजत समजत उमज परेगा । देवा हरीजनको ॥२॥

१७
( राग - सोहनी; ताल - त्रिताल. )
अंतर हेत पछाने । सोही चातुर माने ॥ध्रु.॥
जो कछु है सो परावे मनकी । निरखकी जग जाने ॥१॥
नाटक भेद गुनीजन सारंग । गुनबिन लोक बिराने ॥२॥
रसीक कहे मैं क्या करो रे । केतकी पान पुराने ॥३॥

१८
( राग - असावरी; ताल - धुमाळी )
हक चलो रे हक चलो रे हक चलो रे भाई ।
हक छोरिके नाहक चलना इसमे कोन बडाई ॥ध्रु.॥
हक चलो साहेबका प्यारा उसपर इतबार सारा ।
खलक समजते खलक में है वोहि खलकथी न्यारा ॥१॥
खावे खिलावे देवे दिलावे सोहि आलमकु भावे ।
दुनिया दोजख खालि पसारा समजत भिस्तकु जावे ॥२॥
महाल मुलुक हत्ती घोरे सब सपनको लेखो ।
बंदकमीन कमीन कव्हावे सब अकलथी देखो ॥३॥

१९
( राग - धनाश्री; ताल - त्रिताल. )
चातुर चातुरसे चटका ॥ध्रु.॥
एकएक गुणपर वार डारूं । तन मेरी तोरी गये तटका ॥१॥
सुनत देखत गुण प्रगट लोगनमें । अजब लागे चटका ॥२॥
रामदास साही सब घटव्यापक । आनंदकी घटका ॥३॥

२०
( राग - खमाज; ताल - धुमाळी )
दुनिया सबही फना । कोई नही अपना रे बाबा ॥ध्रु.॥
कोट महल चौकी दरवाजा अंदर खबर न पावे ।
आखर वख्त खुटे वख्त आपहि जंगल वसावे रे बाबा ॥१॥
मीर मलक डरे सुलताना कोई नहीं रहता ।
दास फक्कर सुफेज कलंदर जिकीर करो कहता रे बाबा ॥२॥

२१
( राग - काफी; ताल - दीपचंदी. )
बाबा दो दिनकी दुनिया । बाता कीतनीयां ॥ध्रु.॥
बाजत नोबत झूलत हाती ले करे इतमाम ।
आखर बख्त कोइ नहीं साथी जंगल भयो तमाम ॥१॥
मील कबीला मकरबा बनाया कहां गया जीवडा ।
अपनी नियत उदफूल दिखावे सड गया चमडा रे बाबा ॥२॥
हिंदू मुसलमान गुमान छोडो नजीक है मरना ।
दास फक्कर सुफेज कलंदर कहत जिकीर करना रे बाबा ॥३॥

२२
( राग व ताल - वरील )
रे भाई झूटा है रे संसार । जिस जाते नहिं उधार ॥ध्रु.॥
खबर है सो गबर है रे फिकीर नहि सो फकीर ।
गुमरु खलख दोजख जावे गाफिल सो बे पीर ॥१॥
हत्ती घोरे माल दरुनी औरत बेट्या बेटे ।
बांद्या बंदे सब रहेंगे दौलत हरकोही लूटे ॥२॥
बंदगी नही सो बंदा कैसा देखो अजब तमाशा ।
खुशामतमें बात चलावे सबही फाशाफूशा ॥३॥

२३
( राग - खमाज; ताल - धुमाळी )
जिसके दिल्मे अल्ला उसकी चुकी कुल्बका ।
अल्ला अल्ला ईलिल्ला कहते सब लोक भला ॥ध्रु.॥
आल्ल् पढो रे भाई बाता छोडो दुन्याई । इतनी उमर गवाई अखैर जागा खुदाई ॥१॥
बुरे कुबल वखतोका यारो समालो धका ।
बहुत पड्या हे चुका अवनुद जाता लाखोंका ॥२॥
खबरदारी हुशारी ईसमें अकल है सारी ।
संगिन पुरा पीर होना नको गुमरु कियारी ॥३॥
बुरी ज्यानी दिवानी दगा देते गैबानी । भिस्त कौ नई पछ्यानी ।
गाफिलपणकी निशानी ॥४॥
आदमी दोजखमें पडे पडे उतने छपडे । पैरे पिरोंके मोडे मोडे उसखातर झोडे ॥५॥
सब ले बैठे हे थारा यारा बुजरुखवाला । नाहक होता दुनियामें कैसे हो दुनियादारा ॥६॥
गैबी बंदे खुदाई येकीन अल्ला सुलाई । पहुंचकर मेरा भाई तो चुकेगी दुन्याई ॥७॥

२४
( राग - कानडा; ताल - दादरा )
जबतब जान न पाऊं । आसकूं छपाऊं ॥ध्रु.॥
जान सुजान लिला बहुतेरी । दरसनमांहि मिलाऊं ॥१॥
जिद देखूं तिद मोहन देही । अब मैं कैसे चुकाऊं ॥२॥
नयनमें हय बयनमे हय । समजत सो गुन गाऊं ॥३॥
दास कहे रे नाटकलीला । अंतरमें लपटाऊं ॥४॥

२५
( राग - खमाज; ताल - धुमाळी )
सुनो वा सुनो मुसलमाना । क्यां हय आकलका माना ।
जो कुछ है सो भूतखाना । इताल कीस तरफ जाना ॥ध्रु.॥
किसके कइ तरफ न जाना । आकल खुब खातिर ल्याणा ।
अल्लाके दर्गामें ज्याणा । वाहा तो अलबत हक्क होणा ॥१॥
धणिका आलम हय सारा । दुजा सुरिजनहारा ।
लगाया तेरा और मेरा । उससे चुकता नहि फेरा ॥२॥
गैबी तखत खोया सो पाया । वखत हजुरका आया ।
पैगंबरानें बतलया । सो तुं क्यौं नहि बे पाया ॥३॥
बाबा गैबी सुनावे । आल्ला आवे ना ज्यावे ।
आकल खूब खातिर ल्यावे । पूरा पीरसु पहुंचावे ॥४॥

२६
( राग - काफी; ताल - दीपचंदी )
रे भाई याद करो अल्लाकी । हक चलना सब दिल पाखी ॥ध्रु.॥
कुबल बखत हिंदू जायेगे । जायगे मुसलमाना ।
बेग धणीकी तलब आवे । सब तो अलबत जाना ॥१॥
अला निरंजन दोउ नहीं रे । समजत समजनहारे ।
बंदा कहे समजो रे भाई । सो ही खुदाके प्यारे ॥२॥

२७
( राग व ताल - वरील )
रे भाई गैबी मर्द सो न्यारे । सो ही अल्लामियाके प्यारे ॥ध्रु.॥
देहरा तुटेगा मशीदी तुटेगा । तुटेगा सब हय सो ।
तुटत नहीं फुटत नहीं गैबी सो कैसो रे भाई ॥१॥
हिंदु मुसलमान महज्यब च्यले येक सुरज्जनहारा ।
साहेब अलमकुं चलावे सो अलमथी न्यारा ॥२॥
अवल येक अखीर येक । दोउ नहीं रे भाई ।
हमभी जायेगे तुम बी जायेगे । हकसो ईलाही रे ॥३॥

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Last Updated : December 09, 2016

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