हिन्दी पद - पदे ११ से १५

संत नामदेवजीने हिन्दी में भी बहुत सुंदर और भक्तिपूर्ण रचनायें की है ।


११.
धिग्‌ तो वक्ता धिग्‌ तो सुरता । प्राणनाथको नाम नहिं लेता ॥१॥
नाद वेद सब गनीक पुराण । रामनामको मरम न जान ॥२॥
पंडित होई सो बेद बखाणो । मुरख नामदेव रामही जाणो  ॥३॥
१२.
जन नामदेव पायो नाऊ हरी ।
जम आइका करी हे बौरी इब मोरी छुटी परी ॥१॥
भाव भगतकी नाना बिधि किन्ही फळका कोन करी ।
केवळ ब्रम्हा निकटी लीव लागी मुक्ति कहव परी ॥२॥
नाम लेत सनकादिक तारे पार न पायो तास हरी ।
नामदेव कहे सुनोरे संतो इब मोही समाझी परी ॥३॥
१३.
रामसमाना नामही रामा । तूं साहेब मैं सेवक स्वामी ॥१॥
हरी सरवर जग तरंग कहावे । सेवग हरी तजी कहुंत कत जावे ॥२॥
हरि तरवर ज्ग पंखी छाया । सेवग हरि भजी आवे गवाया ॥३॥
नामा कहे मैं नरहरी पाया । राम रमे मैं रमी राम समया ॥४॥
१४.
राम बोले राम बोले । राम बिना कोऊ न बोलेरे भाई ॥१॥
एकल मिठी कुंजर चिटी । भाजनहै बहु नाना ।
स्थावर जंगम कीट पतंगा । सब घट राम समाना ॥२॥
एकल चीता रहीले नीता और छुटीले सब आसा ।
प्रणवत नामा भये नेहि कामा तुम ठाकुर मे दास ॥३॥
१५.
राममे रमी राम संभारे । मै बलिताका छीन न बिसारे ॥१॥
राम रमे रमीदी अईतारी । वैकुंठनाथ मीले बनवारी ॥२॥
राम रमे रमी दीजे हरी । लाजनकी अई पसवा करी ॥३॥
सरीर सभागा सो मोही भावे । पार ब्रम्हाका जे गुन गावे ॥४॥
सरीर घरेकी इहे बढाई । नामदेव नाऊ न बिसरी जाई ॥५॥

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Last Updated : November 11, 2016

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