संज्ञाप्रकरणम् - श्लोक ८२ ते १००

अनुष्ठानप्रकाश , गौडियश्राद्धप्रकाश , जलाशयोत्सर्गप्रकाश , नित्यकर्मप्रयोगमाला , व्रतोद्यानप्रकाश , संस्कारप्रकाश हे सुद्धां ग्रंथ मुहूर्तासाठी अभासता येतात .


अथ यमघंटा : । मघा सूयें विशाखेंदौ भौमे चार्द्राऽनलो गुरौ । बुधे मूल विधि : शुक्रे यमघट : शनौ कर : ॥८२॥

अथ मृत्युयोग : । नन्दा सूर्ये मंगले च भद्रा भार्गवचन्द्रयो : । बुधे जया गुरौ रिक्ता शनौ पूर्णा च मृत्युदा ॥८३॥

अथ सिद्धियोग : । प्रोक्ता च भार्गवे नन्दा भद्रा सौम्ये प्रकीर्तिता ॥ जया भौमे शनो रिक्ता गुरौ पूर्णा च सिद्धिदा ॥८४॥

( ज्योतिस्तत्त्वे ) " बुधमदगता नंदा कुजे भद्रा गुरौ जया । शुक्रे रिक्ताऽमृतं प्रोक्तं पूर्णा च रविचन्द्रयो ॥१॥ "

अथ संवर्त्तकयोग : । सप्तम्यां च रवेर्वारो बुधस्य प्रतिपद्दिने । संवर्त्ताख्चस्तदा योगो वर्जितव्य : सदा बुद्धै : ॥८५॥

अथ राशिसंज्ञा । सप्तविंशतिभानां च नवभिर्णवभि : पदै : । अश्विनीप्रमुखानां च मेषाद्या राशय : स्मृता : ॥८६॥

मेषो १ बृषोऽथ २ मिथुनं ३ कर्क : ४ सिंहश्व ५ कन्यका ६ । तुला ७ वृश्विक ८ चापौ ९ च मकर : १० कुम्भ ११ मीनकौ १२॥ राशयस्तु क्रमादेते पुंस्त्रियौ क्रूरसौम्यकौ । ज्ञेयश्वर : स्थिरश्वैव द्विस्वभाव : क्रमात्युन : ॥८७॥

( यमघंट ) आदित्यवारको मघा नक्षत्र हो , सोमवारको विशाखा हो , मंगलवारको आर्द्रा हो , गुरुवाग्को कृत्तिका हो , बुधको मूल हो , शुक्रको रोहिणी हो , शनिवारको हस्त होवे तब यमघंट योग होता है ॥८२॥

( मृत्युयोग ) आदित्य या मंगलवारको नन्दा १ । ६ । ११ । तिथि होवे और शुक्र सोमको भद्रा २ । ७ । १२ तिथि हों , बुधको जया ३ । ८ १३ । तियि हों , गुरुवारको रिक्ता ४ । ९ । १४ और शनिवारको पूर्णा ५ । १० । १५ तिथि होवें तो मृत्युयोग होता है ॥८३॥

( सिद्धियोग ) शुक्रवारको नंदा १ । ६ । ११ तिथि हों , बुधवारको भद्रा २ । ७ । १२ होवें और मंगलको जया । ३ । ८ । १३ । तिथि हों , शनिवारको रिक्ता ४ । ९ । १४ हों तथा गुरुवारकों पूर्णा ५ । १० । १५ तिथि होवें तब सिद्धि योग होता है ॥८४॥

( संवर्त्त योग ) सप्तमी तिथिको रविवार हो , प्रतिपदाको बुधवार हो तब संवर्त्तनाम योग होवे सो यह योग अशुभ है ॥८५॥

( राशिसंज्ञा ) अश्विनीसे लेके सत्ताईस २७ नक्षत्रोंके नौ नौ चरणों करके क्रमसे मेषादि बारह १२ राशि होते हैं ॥८६॥

मेष . १ , बृष . २ , मि . ३ , क . ४ , सिं . ५ , क . ६ , तु . ७ , वृ . ८ , ध . ९ , म . १० , कुं . ११ , मीन १२ यह द्वादश १२ राशि हैं इन राशियोंकी मेषादि क्रमसे पुरुष - स्त्री - संज्ञा है और क्रूर सौम्य संज्ञा है तथा चर स्थिर द्विस्वभाव संज्ञा जानना ॥८७॥

अथ नक्षत्राणां प्रत्येकं राशेभोंग : । अश्विनी भरणी कृत्तिकापादं मेष : १ । कृत्तिका त्रय : पादा रोहिणी मृगशिरोऽर्द्ध वृषभ : २ । मृगशिरोत्तराधार्द्रापुनर्वसुन्नयो मिथुन : ३ । पुनर्वस्वंत्यपादपुष्याष्लेषांतं कर्काटक : ४ । मघा पूर्वा उत्तरापाद : सिंह : ५।उत्तरात्रय : पादा : हस्तचित्रार्द्धं कन्या६। चित्रोत्तर र्द्धं स्वाती दिशाखात्रयस्तुला ७। विशाखांत्यपादानुराधा ज्येष्ठांतं वृश्विक : ८। मूलपूर्वाषाढोत्तराषाढापादं धनु : ९। उत्तराषाढात्रय : पादा : श्रवणधनिष्ठार्द्ध मकर : १०। घनिष्ठोत्तरार्द्धं शततारकापूर्वाभाद्रपदात्रय : कुंभ : ११। पूर्वाभाद्रपदांत्यप द उत्तराभाद्रपदा रेवत्यंकं मीन : १२॥ अथाऽवकहडादिचक्रानुसारेण नक्षत्रचरणानां वर्णा : । चूचेचोलाऽश्विनी प्रोक्ता लीलूलेलोभरण्यथ । आईऊए कृत्तिका स्यादोवावीवू तु रोहिणी ॥८८॥

बेवो काकी मृगशिर : कूघडछ तथाऽऽर्द्रका । केकोहाही पुनर्वसु हूहेहोडा तु पुष्यभम्‌ ॥८९॥

डीडूडेडो तु आश्लेषा मामीमूमे मघा स्मृता । मोटाटीटू पूर्वा फल्गु टेटोपाप्युत्तर तथा ॥९०॥

पूषणाठा हस्ततारा पेपोरारी तु चित्रका । रूरेरोता स्मृता स्वाती तीतूतेतो विशाखिका ॥९१॥

नानीनूनेऽनुगधर्क्षं ज्येष्ठा नोयायियू : स्मृता । येयोभाभी मूलतारा पूर्वाषाढा भुधाफढा ॥९२॥

भेभोजाज्युत्तराषाढा जूजेजोखाऽभिजिद्भवेत । खीखूखेखो श्रवण भ गाभीगूगे धनिष्ठिका ॥९३॥

गोसासीसू शतभिषक्सेसोदादी तु पूर्वभाक्‌ । दथझञोत्तरा भाद्रा देदोचाची तु रेवती ॥९४॥

( नक्षत्र राशि भोगविचार ) अश्विनी भरणी संपूर्ण और कृत्तिकाके प्रथम पादतक मेष राशि है १ । और कृत्तिकाके तीन पाद रोहिणी संपूर्ण मृगशिरके दो पादतक वृष जानो २ । मृगशिरका दो चरण और आर्द्रा सारी पुनर्वसुके तीन पादतक मिथुन राशि है ३ । पुनर्वसुका अंत चरण और पुष्य आश्लेषाके संपूर्ण तक कर्क है ४ । मघा पूर्वाफाल्गुनी संपूर्ण और उत्तराफाल्गुनीके प्रथम पादतक सिंहराशि जानो ५ । उत्तराका तीन पाद हस्त संपूर्ण चित्राके दो चरणतक कन्या है ६ । चित्राका दो चरण स्वाती संपूर्ण विशाखाके तीन पादतक तुलाराशि है ७ । विशाखाके अंतको चरण और अनुराधा ज्येष्ठा सम्पूर्ण होनेसे वृश्विक है ८ । मूल पूर्वाषाढा संपूर्ण उत्तराषाढाके प्रथम पादतक धनूराशि है ९ । उत्तराके तीन पाद श्रवण सम्पूर्ण धनिष्ठाके दो पादतक मकरराशि जानो १० । धनिष्ठाका उत्तरार्द्ध शतभिषा सम्पूर्ण पूर्वाभाद्रपदाके तीन चरणतक कुंभराशि है ११ । पूर्वाभाद्रपदाका अन्त्य चरण और उत्तराभाद्रपदा रवेती सम्पूर्ण तक मीनराशि होती है १२ ॥८८॥९४॥

अथ नामतो राशिज्ञ । नम्‌ । चूचेचोलालीलूलेलोआ मेष : १ , ईऊए ओवाबीवूवेवो वृष : २ , काकीकूघङछकेकोहा मिथुन : ३ , हीहूहेहोडाडी हूडेडो कर्क : ४ , मामीमूमेमोटाटीटूटे सिंह : ५ , टोपापीपूषणाठापेपो कन्या ६ , रारीरूरेरोतातीतूते तुला ७ , तोनानीनूनेनोयायीयू वृश्चिक : ८ , योयोभाभीभूधाफढाभे धनु : ९ , भोजाजीजूजेजोख । खीखृखेखोगागी मकर : १० , गूगोगोसासीसूसेसोदा कुम्भ : ११ , दीदूथझञदेदोचाची मीन : १२ इति द्वादश राशय : ॥ अथ राश्यधिपतय : । मेषवृश्विकयोभौंम : शुक्रो वृषतुलाप्रभु : । बुध : कन्यामिथुनयो : पति : कर्कस्य चद्रमा : ॥९५॥

स्यान्मीनधनुषोर्जीव : शनिर्मकरकुम्भयो : । सिंहस्याधिपति : सूर्य : कथितो गणकोत्तमै : ॥९६॥

अथ पृष्ठोदयादिसंज्ञा । पृष्ठोदया धनुमेंषो मकरो वृषकर्कटौ । उभयोदयवान्‌ मीनस्ततोऽन्ये मस्तकोदया : ॥९७॥

मेषो वृषो धनुर्युग्म कर्कनकौ निशाबला : । दिवाबलास्तु तेश्र्योऽन्ये स्वस्वकाले वलाधिका : ॥९८॥

अथ ग्रहोच्चसंज्ञा । मेषो वृषस्तथा नक्र : कन्याकर्कझषास्तुला । सूर्यादीनां क्रमादेते कथिता उच्चराशय : ॥९९॥

परमोच्चांशका : सूर्याद्दिशो १० रामा ३ गजाश्विन : २८ । बाणचंद्रा : १५ शरा : ५ शैलद्दश : २७ स्वाश्वि२०मिता : क्रमात्‌ ॥१००॥

नामसे राशिज्ञानका चक्र ऊपर लिखा है उसे समझ लेना । ( राशिस्वामी ) मेष , वृश्विकका मङ्गल स्वामी है . वृष . तुलाका शुक्र स्वामी हि . कन्या . मिथुनका बुध है . कर्कका स्वामी चंद्रमा है ॥९५॥

धनु , मीनका बृहस्पति स्वामी है , मकर , कुंभका शनैश्वर है , सिंहराशिका सूर्य मालिक जानना ॥९६॥

( पृष्ठोदयादिसंज्ञा ) धन ८ मेष १ मकर १० वृष २ कर्क ४ यह राशि पृष्ठोदयसंज्ञक हैं अर्थात्‌ पृष्ठभागसे उदय होती हैं , और मीन १२ राशि उभयोदयवान्‌ अर्थात्‌ पृष्ठ तथा मस्तक दोनों अंग प्रथम उदय करता है और शेष रही हुई राशि अर्थात्‌ मिथुन ३ सिंह ५ कन्या ६ तुला ७ वृश्चिक ८ कुंभ ११ राशि मस्तकको अगाडी करके उदय होती हैं ॥९७॥

मेष १ , वृषभ २ , धन ९ , मिथुन ३ , कर्क ४ , मकर १० यह रा्शिया लग्न रात्रिमें बलवान्‌ हैं और सिंह ५ , कन्या ६ , तुला ७ , वृश्विक ८ , कुम्भ ११ मीन १२ यह राशि या लग्न दिनमें बलवान्‌ हैं सो अपने अपने समयमें बल देते हैं ॥९८॥

( ग्रहोंकी उच्च संज्ञा ) सूर्यकी मेष १ , उच्चराशि है , चंद्रमाकी वृष २ , मंगलकी मकर १० , बुधकी कन्या ६ , गुरुकी कर्क ४ , शुक्रकी मीन १२ . शनैश्वरकी तुला ७ राशि उच्चकी है ॥९९॥

और सूर्य दश १० अंशतक परम उच्चका है । चंद्रमा ३ अंशतक । मंगल २८ अंशतक । बुध १५ अंशतक । गुरु ५ अंशतक । शुक्र २७ अंशतक । शनैश्वर २० अंशतक परम उच्चका होता है ॥१००॥

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Last Updated : November 11, 2016

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