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बालकाण्ड - दोहा ३१ से ४०

गोस्वामी तुलसीदासने रामचरितमानस ग्रन्थकी रचना दो वर्ष , सात महीने , छ्ब्बीस दिनमें पूरी की । संवत्‌ १६३३ के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में रामविवाहके दिन सातों काण्ड पूर्ण हो गये।


दोहा

राम कथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारु ।

तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारु ॥३१॥

चौपाला
राम चरित चिंतामनि चारू । संत सुमति तिय सुभग सिंगारू ॥

जग मंगल गुन ग्राम राम के । दानि मुकुति धन धरम धाम के ॥

सदगुर ग्यान बिराग जोग के । बिबुध बैद भव भीम रोग के ॥

जननि जनक सिय राम प्रेम के । बीज सकल ब्रत धरम नेम के ॥

समन पाप संताप सोक के । प्रिय पालक परलोक लोक के ॥

सचिव सुभट भूपति बिचार के । कुंभज लोभ उदधि अपार के ॥

काम कोह कलिमल करिगन के । केहरि सावक जन मन बन के ॥

अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद घन दारिद दवारि के ॥

मंत्र महामनि बिषय ब्याल के । मेटत कठिन कुअंक भाल के ॥

हरन मोह तम दिनकर कर से । सेवक सालि पाल जलधर से ॥

अभिमत दानि देवतरु बर से । सेवत सुलभ सुखद हरि हर से ॥

सुकबि सरद नभ मन उडगन से । रामभगत जन जीवन धन से ॥

सकल सुकृत फल भूरि भोग से । जग हित निरुपधि साधु लोग से ॥

सेवक मन मानस मराल से । पावक गंग तंरग माल से ॥

दोहा

कुपथ कुतरक कुचालि कलि कपट दंभ पाषंड ।

दहन राम गुन ग्राम जिमि इंधन अनल प्रचंड ॥३२ (क )॥

रामचरित राकेस कर सरिस सुखद सब काहु ।

सज्जन कुमुद चकोर चित हित बिसेषि बड़ लाहु ॥३२ (ख )॥

चौपाला
कीन्हि प्रस्न जेहि भाँति भवानी । जेहि बिधि संकर कहा बखानी ॥

सो सब हेतु कहब मैं गाई । कथाप्रबंध बिचित्र बनाई ॥

जेहि यह कथा सुनी नहिं होई । जनि आचरजु करैं सुनि सोई ॥

कथा अलौकिक सुनहिं जे ग्यानी । नहिं आचरजु करहिं अस जानी ॥

रामकथा कै मिति जग नाहीं । असि प्रतीति तिन्ह के मन माहीं ॥

नाना भाँति राम अवतारा । रामायन सत कोटि अपारा ॥

कलपभेद हरिचरित सुहाए । भाँति अनेक मुनीसन्ह गाए ॥

करिअ न संसय अस उर आनी । सुनिअ कथा सारद रति मानी ॥

दोहा

राम अनंत अनंत गुन अमित कथा बिस्तार ।

सुनि आचरजु न मानिहहिं जिन्ह कें बिमल बिचार ॥३३॥

चौपाला
एहि बिधि सब संसय करि दूरी । सिर धरि गुर पद पंकज धूरी ॥

पुनि सबही बिनवउँ कर जोरी । करत कथा जेहिं लाग न खोरी ॥

सादर सिवहि नाइ अब माथा । बरनउँ बिसद राम गुन गाथा ॥

संबत सोरह सै एकतीसा । करउँ कथा हरि पद धरि सीसा ॥

नौमी भौम बार मधु मासा । अवधपुरीं यह चरित प्रकासा ॥

जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं । तीरथ सकल तहाँ चलि आवहिं ॥

असुर नाग खग नर मुनि देवा । आइ करहिं रघुनायक सेवा ॥

जन्म महोत्सव रचहिं सुजाना । करहिं राम कल कीरति गाना ॥

दोहा

मज्जहि सज्जन बृंद बहु पावन सरजू नीर ।

जपहिं राम धरि ध्यान उर सुंदर स्याम सरीर ॥३४॥

चौपाला
दरस परस मज्जन अरु पाना । हरइ पाप कह बेद पुराना ॥

नदी पुनीत अमित महिमा अति । कहि न सकइ सारद बिमलमति ॥

राम धामदा पुरी सुहावनि । लोक समस्त बिदित अति पावनि ॥

चारि खानि जग जीव अपारा । अवध तजे तनु नहि संसारा ॥

सब बिधि पुरी मनोहर जानी । सकल सिद्धिप्रद मंगल खानी ॥

बिमल कथा कर कीन्ह अरंभा । सुनत नसाहिं काम मद दंभा ॥

रामचरितमानस एहि नामा । सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ॥

मन करि विषय अनल बन जरई । होइ सुखी जौ एहिं सर परई ॥

रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ॥

त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ॥

रचि महेस निज मानस राखा । पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा ॥

तातें रामचरितमानस बर । धरेउ नाम हियँ हेरि हरषि हर ॥

कहउँ कथा सोइ सुखद सुहाई । सादर सुनहु सुजन मन लाई ॥

दोहा

जस मानस जेहि बिधि भयउ जग प्रचार जेहि हेतु ।

अब सोइ कहउँ प्रसंग सब सुमिरि उमा बृषकेतु ॥३५॥

चौपाला
संभु प्रसाद सुमति हियँ हुलसी । रामचरितमानस कबि तुलसी ॥

करइ मनोहर मति अनुहारी । सुजन सुचित सुनि लेहु सुधारी ॥

सुमति भूमि थल हृदय अगाधू । बेद पुरान उदधि घन साधू ॥

बरषहिं राम सुजस बर बारी । मधुर मनोहर मंगलकारी ॥

लीला सगुन जो कहहिं बखानी । सोइ स्वच्छता करइ मल हानी ॥

प्रेम भगति जो बरनि न जाई । सोइ मधुरता सुसीतलताई ॥

सो जल सुकृत सालि हित होई । राम भगत जन जीवन सोई ॥

मेधा महि गत सो जल पावन । सकिलि श्रवन मग चलेउ सुहावन ॥

भरेउ सुमानस सुथल थिराना । सुखद सीत रुचि चारु चिराना ॥

दोहा

सुठि सुंदर संबाद बर बिरचे बुद्धि बिचारि ।

तेइ एहि पावन सुभग सर घाट मनोहर चारि ॥३६॥

चौपाला
सप्त प्रबन्ध सुभग सोपाना । ग्यान नयन निरखत मन माना ॥

रघुपति महिमा अगुन अबाधा । बरनब सोइ बर बारि अगाधा ॥

राम सीय जस सलिल सुधासम । उपमा बीचि बिलास मनोरम ॥

पुरइनि सघन चारु चौपाई । जुगुति मंजु मनि सीप सुहाई ॥

छंद सोरठा सुंदर दोहा । सोइ बहुरंग कमल कुल सोहा ॥

अरथ अनूप सुमाव सुभासा । सोइ पराग मकरंद सुबासा ॥

सुकृत पुंज मंजुल अलि माला । ग्यान बिराग बिचार मराला ॥

धुनि अवरेब कबित गुन जाती । मीन मनोहर ते बहुभाँती ॥

अरथ धरम कामादिक चारी । कहब ग्यान बिग्यान बिचारी ॥

नव रस जप तप जोग बिरागा । ते सब जलचर चारु तड़ागा ॥

सुकृती साधु नाम गुन गाना । ते बिचित्र जल बिहग समाना ॥

संतसभा चहुँ दिसि अवँराई । श्रद्धा रितु बसंत सम गाई ॥

भगति निरुपन बिबिध बिधाना । छमा दया दम लता बिताना ॥

सम जम नियम फूल फल ग्याना । हरि पत रति रस बेद बखाना ॥

औरउ कथा अनेक प्रसंगा । तेइ सुक पिक बहुबरन बिहंगा ॥

दोहा

पुलक बाटिका बाग बन सुख सुबिहंग बिहारु ।

माली सुमन सनेह जल सींचत लोचन चारु ॥३७॥

चौपाला
जे गावहिं यह चरित सँभारे । तेइ एहि ताल चतुर रखवारे ॥

सदा सुनहिं सादर नर नारी । तेइ सुरबर मानस अधिकारी ॥

अति खल जे बिषई बग कागा । एहिं सर निकट न जाहिं अभागा ॥

संबुक भेक सेवार समाना । इहाँ न बिषय कथा रस नाना ॥

तेहि कारन आवत हियँ हारे । कामी काक बलाक बिचारे ॥

आवत एहिं सर अति कठिनाई । राम कृपा बिनु आइ न जाई ॥

कठिन कुसंग कुपंथ कराला । तिन्ह के बचन बाघ हरि ब्याला ॥

गृह कारज नाना जंजाला । ते अति दुर्गम सैल बिसाला ॥

बन बहु बिषम मोह मद माना । नदीं कुतर्क भयंकर नाना ॥

दोहा

जे श्रद्धा संबल रहित नहि संतन्ह कर साथ ।

तिन्ह कहुँ मानस अगम अति जिन्हहि न प्रिय रघुनाथ ॥३८॥

चौपाला
जौं करि कष्ट जाइ पुनि कोई । जातहिं नींद जुड़ाई होई ॥

जड़ता जाड़ बिषम उर लागा । गएहुँ न मज्जन पाव अभागा ॥

करि न जाइ सर मज्जन पाना । फिरि आवइ समेत अभिमाना ॥

जौं बहोरि कोउ पूछन आवा । सर निंदा करि ताहि बुझावा ॥

सकल बिघ्न ब्यापहि नहिं तेही । राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही ॥

सोइ सादर सर मज्जनु करई । महा घोर त्रयताप न जरई ॥

ते नर यह सर तजहिं न काऊ । जिन्ह के राम चरन भल भाऊ ॥

जो नहाइ चह एहिं सर भाई । सो सतसंग करउ मन लाई ॥

अस मानस मानस चख चाही । भइ कबि बुद्धि बिमल अवगाही ॥

भयउ हृदयँ आनंद उछाहू । उमगेउ प्रेम प्रमोद प्रबाहू ॥

चली सुभग कबिता सरिता सो । राम बिमल जस जल भरिता सो ॥

सरजू नाम सुमंगल मूला । लोक बेद मत मंजुल कूला ॥

नदी पुनीत सुमानस नंदिनि । कलिमल तृन तरु मूल निकंदिनि ॥

दोहा

श्रोता त्रिबिध समाज पुर ग्राम नगर दुहुँ कूल ।

संतसभा अनुपम अवध सकल सुमंगल मूल ॥३९॥

चौपाला
रामभगति सुरसरितहि जाई । मिली सुकीरति सरजु सुहाई ॥

सानुज राम समर जसु पावन । मिलेउ महानदु सोन सुहावन ॥

जुग बिच भगति देवधुनि धारा । सोहति सहित सुबिरति बिचारा ॥

त्रिबिध ताप त्रासक तिमुहानी । राम सरुप सिंधु समुहानी ॥

मानस मूल मिली सुरसरिही । सुनत सुजन मन पावन करिही ॥

बिच बिच कथा बिचित्र बिभागा । जनु सरि तीर तीर बन बागा ॥

उमा महेस बिबाह बराती । ते जलचर अगनित बहुभाँती ॥

रघुबर जनम अनंद बधाई । भवँर तरंग मनोहरताई ॥

दोहा

बालचरित चहु बंधु के बनज बिपुल बहुरंग ।

नृप रानी परिजन सुकृत मधुकर बारिबिहंग ॥४०॥

चौपाला
सीय स्वयंबर कथा सुहाई । सरित सुहावनि सो छबि छाई ॥

नदी नाव पटु प्रस्न अनेका । केवट कुसल उतर सबिबेका ॥

सुनि अनुकथन परस्पर होई । पथिक समाज सोह सरि सोई ॥

घोर धार भृगुनाथ रिसानी । घाट सुबद्ध राम बर बानी ॥

सानुज राम बिबाह उछाहू । सो सुभ उमग सुखद सब काहू ॥

कहत सुनत हरषहिं पुलकाहीं । ते सुकृती मन मुदित नहाहीं ॥

राम तिलक हित मंगल साजा । परब जोग जनु जुरे समाजा ॥

काई कुमति केकई केरी । परी जासु फल बिपति घनेरी ॥

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Last Updated : February 24, 2011

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