शिव तंत्र - रावण शिव संवाद

भगवान शिव ने लंकापती रावण को जो तंत्रज्ञान दिया , उसमेंसे ये साधनाएं शीघ्र सिद्धि प्रदान करने वाली है ।


रावण - शिव संवाद

नमस्ते देव देवेश सदाशिव जगदगुरो ।

तन्त्रविद्यां क्षणं सिद्धिं कथयस्व मम प्रभो ॥

हे सदाशिव , देवों के देव जगदगुरु प्रभु ! आपको मेरा प्रणाम है । क्षणभर में सिद्धि प्रदान करने वाली तन्त्रविद्या का कथन मुझसे कीजिए ।

साधु पृष्टं त्वा वत्स लोकानां हितकाम्यया ।

उड्डीशाख्यामिदं तन्त्र कथयामि तवाग्रतः ॥

महादेव जी ने कहा - हे पुत्र ! लोगों के हित की इच्छा के विचार से तुमने यह अच्छा पूछा है । अतः मैं तुमसे ' उड्डीश ' नामक इस तंत्र को कहता हूं ।

पुस्तके लिखिता विद्या नैव सिद्धिप्रदा नृणाम ।

गुरुं विना हि शास्त्रेऽस्मिन्नाधिकारः कथञ्चन ॥

पुस्तकों में लिखी विद्या कभी सिद्धी प्रदान करने वाली नहीं होती । गुरु के बिना तन्त्रशास्त्र पर किसी का अधिकार नहीं होता ।

आगे रावण से श्री शिव कहते हैं -

अथाभिध्यास्ये शास्त्रेऽस्मिन्सम्यक् षटकर्मलक्षणम् ।

तन्मन्त्रानुसारेण प्रयोगफलसिद्धिदेम् ॥

अब मैं इस शास्त्र में सम्यक् तथा उन षटकर्मों के लक्षणों को तुमसे कहता हूं , जिनके तन्त्रानुसार एवं मन्त्रानुसार विधिवत् प्रयोग करने पर सिद्धि की प्राप्ति होती है ।

 

षटकर्म

शान्तिवश्यस्तम्भनानि विद्वेषोच्चाटनं तथा ।

मारणं तानि शंसन्ति षट् कर्मणिमनीषिणः ॥

शान्ति , वशीकरण , स्तम्भन , विद्वेषण , उच्चाटन , मारण - इनको ही प्राचीन महर्षियों ने षटकर्म कहा है ।

 

षटकर्म के लक्षण

रोगकृत्या गृहादीनां निराशः शान्तिरीरीता ।

वश्यं जनानां सर्वेषां विधेयत्वमुदीरितम् ॥

जिस प्रयोग के द्वारा रोगों की शान्ति तथा ग्रहों की शान्ति की जाए और निराशा इत्यादि का नाश किया जाए , उस प्रयोग को ' शान्तिकर्म ' कहते है । सभी मनुष्यों को अपने मनोनुकूल कर लेना ' वशीकरण ' कहलाता है ।

प्रवृत्तिरोधः सर्वेषां स्तम्भनं समुदाह्नतम् ।

स्निग्धानां द्वेषभावं मिथो विद्वेषणं मतम् ॥

सभी की प्रवृत्ति को रोकना एवं शत्रु की गति - मति को रोक देना , अपने अधिकार में करना ' स्तम्भन कर्म ' कहलाता है । दो - प्रेमी , पति - पत्नी या दो पुरुषो में द्वेष करवा देना ' विद्वेषण कर्म ' कहलाता है ।

उच्चाटनं स्वदेशादेर्भ्रंशनं परिकीर्तितम् ।

प्राणिनां प्राणहरणं मारणं समुदाहतम् ॥

जिस कर्म के द्वारा किसी प्राणी को उसके निवास स्थान से अलग कर दिया जाए , उसका नाम ' उच्चाटन ' है और किसी भी प्राणी को अपने तन्त्रोबल प्रयोग द्वारा मार दिया जाए , उसके प्राणोम का हरण कर लिया जाए तो वह प्रयोग ' मारण ' कहलाता है ।

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Last Updated : December 26, 2010

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