नित्यकर्म - कर्म ३

भगवान शिव ने लंकापती रावण को जो तंत्रज्ञान दिया , उसमेंसे ये साधनाएं शीघ्र सिद्धि प्रदान करने वाली है ।


यज्ञोपवीत - धारण विधि

यज्ञोपवीत धारण करें । यदि मल - मूत्र का त्याग करते समय यज्ञोपवीत कान में टांगना भूल जाएं तो नया बदल लें । नए यज्ञोपवीत को जल द्वारा शुद्ध करके , दस बार गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित कर निम्न मंत्रों से देवताओं का आवाहन करें -

प्रथमतंतौ - ॐ कारमावाहयामि

द्वितीयतंतौ - ॐ अग्निमावाहयामि

तृतीयतंतौ - ॐ सर्पानावाहयामि

चतुर्थतंतौ - ॐ सोममावाहयामि

पंचमतंतौ - ॐ पितृनावाहयामि

षष्ठतंतौ - ॐ प्रजापतिमावाहयामि

सप्तमतंतौ - ॐ अनिलमावाहयामि

अष्टमतंतौ - ॐ सूर्यमावाहयामि

नवमतंतौ - ॐ विश्वान्देवानावाहयामि

ग्रंथिमध्ये - ॐ ब्रह्मणे नमः ब्रह्माणमावाहयामि

ॐ विष्णवे नमः विष्णुमावाहयामि

ॐ रुद्राय नमः रुद्रमावाहयामि

इस प्रकार आवाहन करके गंध और अक्षत से आवाहित देवताओं की पूजा करें तथा निम्नलिखित मंत्र से यज्ञोपवीत धारण का विनियोग करें -

विनियोग - ॐ यज्ञोपवीतमिति मंत्रस्य परमेष्ठी ऋषिः , लिंगोक्ता देवता , त्रिष्टुपछन्दो यज्ञोपवीत धारणे विनियोगः ।

तदनन्तर जनेऊ धोकर प्रत्येक बार निम्न मंत्र बोलते हुए एकेक कर धारण करें -

ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात् ।

आयुष्मग्रयं प्रतिमुंच शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः ॥

पुराने जनेऊ को कंठीकर सिर पर से पीठ की ओर निकालकर यथा - संख्य गायत्री मंत्र का जप करें -

एतावददिन - पर्यन्तं ब्रह्मत्वं धारितं मया ।

जीर्णत्वात् त्वत्परित्यागी गच्छ सूत्र ! यथासुखं ॥

अब आसनादि बिछाकर आचमन आदि क्रिया करें -

केशवाय ॐ नमः स्वाहा

ॐ नारायणाय स्वाहा

ॐ माधवाय नमः स्वाहा

उपर्युक्त मंत्र बोलते हुए तीन बार आचमन करें । इसके पश्चात् अंगूठे के मूल से दो बार होंठों को पोंछकर ॐ गोविंदाय नमः बोलकर हाथ धो लें ।

फिर दाएं हाथ की हथेली में जल लेकर कुशा से अथवा कुशा के अभाव में अनामिका और मध्यमा से , मस्तक पर जल छिड़कते हुए यह मंत्र पढ़ें -

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपिवा ।

यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः ॥

तदनन्तर निम्नलिखित मंत्र से आसन पर जल छिड़ककर दाएं हाथ से उसका स्पर्श करें -

ॐ पृथ्वि ! त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता ।

त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् ॥

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Last Updated : December 26, 2010

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