मेघदूत उत्तरमेघा - श्लोक १ ते ५

"मेघदूत" की लोकप्रियता भारतीय साहित्य में प्राचीन काल से ही रही है।


जिस अलकापुरीके महल अपनी उन-उन विशेषताओसे तुम्हारी समता करनेमे समर्थ है । जैसे-तुममे बिजली की चंचलता है तो महलोमे सुन्दरी रमणीयो की चेष्टाएँ । तुममे रंगबिरंगा इन्द्रधनु है उनमे रंगबिरंगे चित्र । तुम स्निग्ध गंभीर घोष करते हो तो वहाँ संगीतकलाका मृदंग बजता है । तुम्हारे भीतर जल भरा है तो उनके फ़र्श मणिमय है । तुम ऊँचाईपर हो तो उनकी भी छते गगनचुंबी है ॥१॥

जिस अलकाकी रमणियाँ छहो ऋतुओमे होनेवाले पुष्पोका सदा उपयोग करती है, जैसे-उनके हाथोमे लीला कमल है, जो कि शरदमे होते है । बालोमे कुन्द है जो हेमन्तमे होता है । मुखमे लोधके परागका चूर्ण मला गया है जो शिशिरमे होता है । जूडोमे कुरबकेके ( ताजे झिण्टिके ) फ़ूल है जो वसन्तमे होते है, कानमे शिरीष है जो ग्रीष्ममे खिलता है और मांगमे कदम्बका पुष्प है, मेघागम होनेपर वर्षामे खिलता है ॥२॥

जिस अलकामे वृक्षोपर सदा फ़ूल खिले रहनेसे मस्त भौरे गुंजायमान रहते है । बावडियोमे सदा कमल खिले रहते है और हंसोकी पंक्तियाँ करधनी-सी दिखती है । पालतू मोर सदा अपने चमकीले पंखोको फ़ैलाये हुए ऊपरको गर्दन उठाकर कूजते रहते है और जहाँकी सन्ध्याये सदा रहनेवाली चाँदनीसे अंधेरा नष्ट हो जानेके कारण रमणीय लगती है ॥३॥

जिस अलकामे रहनेवाले यक्षोके आँखोसे आँसू आनन्दमेही निकलते है, और किसी ( पीडा आदि ) कारणसे नही । प्रियजनोके समागमसे मिटने योग्य कामज तापके सिवा दूसरा कोई ताप उन्हे नही होता । प्रणयकलहके अतिरिक्त कभी प्रेमियोका विरहका अनुभव नही होता । यौवनके सिवा दूसरी अवस्था उनकी नही होती, अर्थात वे सदा युवा ही रहते है ॥४॥

जिस अलकामे यक्ष अपनी सुन्दरियोके साथ, स्फ़टिकमणिसे बनी हुई और आकाशके तारोके प्रतिबिम्ब ही जिसमे सजाये हुये फ़ूलोसे लग रहे है ऐसी, महलोकी अटारियोपर जाकर तुम्हारी तरह गम्भीर ध्वनिवाले मृदंगपुटोके बजनेपर कल्पवृक्षसे निकली हुई और कामोद्दीपक मदिराका सेवन करते है ॥५॥

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Last Updated : March 22, 2010

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