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सोमवंश

   
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सोमवंश     

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See : चंद्रवंश

सोमवंश     

सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  जो सोमपुत्र पुरुरवस् ऐल के द्वारा स्थापित किया गया था ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  पौराणिक साहित्य में निर्दिष्ट बहुतसारा राजकीय इतिहास सोमवंश में उत्पन्न हुए राजाओं का, एवं उनके वंशजों का इतिहास कहा जा सकता है । यद्यपि प्राचीन इतिहास के प्रारंभ में सूर्यवंश में उत्पन्न हुए राजाओं का भारतवर्ष में काफी प्राबल्य था, फिर भी उत्तरकालीन इतिहास में उनकी राजसत्ता अयोध्या, विदेह एवं वैशालि राज्यों से ही मर्यादित रही । उक्त उत्तरकालीन इतिहास में मांधातृ एवं सगर ये केवल दो ही सूर्यवंशीय राजा ऐसे थें, जिन्होंने समस्त उत्तरभारतवर्ष पर अपना स्वामित्व प्रस्थापित किया था । उत्तरकालीन भारतीय इतिहास में अयोध्या, विदेह एवं वैशालि इन तीन देशों को छोड कर बाकी सारे उत्तरभारत, एवं उत्तरीपश्चिम दक्षिणी भारत पर सोमवंशीय राजाओं का ही राज्य था, जिनकी संक्षिप्त जानकारी निम्नलिखित है : -
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  इनका राज्य काशी एवं शूरसेन देश छोडकर गंगा एवं यमुनानदियों के समस्त समतल प्रदेश में स्थित था । इस वंश के राज्यों में हस्तिनापुर, पांचाल, चेदि, वत्स, करुष, मगध एवं मत्स्य आदि राज्य प्रमुख थे ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  इन लोगों का राज्य पश्चिम में राजपुताना मरुभूमि से लेकर उत्तर में यमुना नदी तक फैला हुआ था ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  इन लोगों के एक शाखा का राज्य पंजाब देश में था, जिनमें सिंधु, सौवीर, कैकेय, मद्र, बाहीक, शिबि एवं अंबष्ठ प्रमुख थे । इन लोगों के दूसरी एक शाखा का राज्य पूर्व बिहार, बंगाल एवं ओरिसा में था, जहाँ इन लोगों के अंग, वंश, पुण्ड्र, सुह्य एवं कलिंग राज्य प्रमुख थे ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  इन लोगों का राज्य गांधार देश में था, एवं कई अभ्यासकों के अनुसार इनका विस्तार उत्तरी पश्चिमभारत की सीमाभाग पर स्थित म्लेच्छ लोगों तक फैला हुआ था ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  इन लोगों का उत्तरभारत में स्थित राज्य तो नष्ट हुआ था । किन्तु कई अभ्यासकों के अनुसार, दक्षिण भारतवर्ष के पाण्ड्य, चोल एवं केरल राजवंश इन्हींसे उत्पन्न हुए थे ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  इन लोगों का राज्य काशि देश में था । इसी कारण ययाति से उत्पन्न पाँच वंशों का राज्य सारी पृथ्वी पर था, ऐसा स्पष्ट निर्देश पौराणिक साहित्य में था [वायु. ९३.१०३.९९ - ४७२] ;[ब्रह्मांड. ३.६८.१०५ - १०६] । पौराणिक साहित्य में प्राप्त इस निर्देश से यादव, तुर्वसु, आनव, द्रुह्यु एवं पौरव इन पाँच उपशाखाओं का निर्देश अभिप्रेत है ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  बुध का इला से उत्पन्न पुत्र पुरुरवसू ऐल सोमवंश का संस्थापक माना जाता है । यद्यपि इन लोगों का राज्य प्रतिष्ठान (आधुनिक प्रयाग) प्रदेश में था । फिर भी इन लोगों का मूलस्थान हिमालय प्रदेश में कहीं था, पुरुरवस् के द्वारा स्थापित किया गया राज्य ऐल राज्य नाम से सुविख्यात था, जो सात द्वीपों में विभाजित था । यही राज्य आगे चल कर, पुरुरवस् के आयु, एवं अमावसु नामक दो पुत्रों के पुत्रपौत्रों में विभाजित हुआ । इन्हीं से आगेचल कर सोमवंश के निम्नलिखित शाखाओं का निर्माण हुआ : -
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  पुरुरवस् राजा के अमावसु नामक पुत्र के द्वारा यह स्थापित की गयी थी, एवं कान्यकुब्ज देश पर राज्य करती थी ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  पुरुरवस् के ज्येष्ठ पुत्र आयु के अनेनस्, नहुष, क्षत्रवृद्ध, रम्भ एवं रजि नामक पाँच पुत्र थे । इनमें से अनेनस् के द्वारा आयु नामक स्वतंत्र राजवंश (सो. आयु.) की स्थापना की गयी । आयु के बाकी पुत्रों के द्वारा स्थापित किये गये राजवंश पूरुवंश (सो. पुरु.) सामुहिक नाम से सुविख्यात हुए, जिनमें निम्नलिखित राजवंश प्रमुख थे : -
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  जो आयु राजो के पुत्र क्षत्रवृद्ध के द्वारा स्थापित किया गया था, एवं काशी देश में राज्य करता था;
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  जो आयु राजा के पौत्र यदु के द्वारा स्थापित किया गया था;
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  जो आयुराजा के पौत्र तुर्वसु के द्वारा स्थापित किया गया था;
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  जो आयुराजा के पौत्र द्रुह्यु राजा के द्वारा स्थापित किया गया था, एवं गांधार देश में राज्य करता था;
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  जो आयु राजा के पौत्र अनुराजा के द्वारा स्थापित किया गया था;
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  जो आयुराजा के पौत्र पूरुराजा के द्वारा स्थापित किया गया था ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  इस राजवंश की निम्नलिखित उपशाखाएँ प्रमुख थीं : -
१. सहस्त्रजित् शाखा (सो. सह.)---जो वंश यदुपुत्र सहस्त्रजित् के द्वारा स्थापित किया गया था, एवं जो ‘ हैहय ’ सामूहिक नाम से सुविख्यात था;
२. क्रोष्टु शाखा (सो. क्रोष्टु.)---जो वंश क्रोष्टु के द्वारा स्थापित किया गया था, एवं ‘ यादव’ सामूहिक नाम से प्रसिद्ध था ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  इस वंश की निम्नलिखित उपशाखाएँ प्रमुख थीं : -
१. उशीनर शाखा (सो. उशी.)---जो वंश अनुवंश में उत्पन्न उशीनर राजा के द्वारा स्थापित किया गया था, एवं जिसमें सौवीर, केकय, मद्रक आदि उपशाखाएँ प्रमुख थी;
२. तितिक्षु शाखा (सो. तितिक्षु.)---जो वंश अनुवंश में उत्पन्न तितिक्षु राजा के द्वारा स्थापित किया गया था, एवं जिसमें अंग, वंग आदि अनेक उपशाखाएँ समाविष्ट थी ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  इस वंश के लोग ‘ भरत ’ सामूहिक नाम से प्रसिद्ध थे, एवं उनकी निम्नलिखित शाखाएँ प्रमुख थीं :-
१. अजमीढ शाखा (सो. अज.)---जो अजमीढ के द्वारा स्थापित की गयी थी, एवं जिसकी हस्तिनापुर के कुरु (सो. कुरु.) एवं उत्तर पांचाल के नील (सो. नील.) ये दो शाखाएँ प्रमुख थीं;
२. द्विमीढ शाखा (सो. द्विमीढ.)---जो भरतवंश में उत्पन्न द्विमीढ राजा के द्वारा स्थापित की गयी थी ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  $सोमवंश के उपर्युक्त राजवंशों की एवं उनकी विभिन्न शाखाओं की जानकारी अकारादि क्रम से नीचे दी गयी है : -
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  अजमीढपुत्र बृहदिशु के द्वारा इस वंश की स्थापना हुई, जिसकी संपूर्ण जानकारी छः पुराणों में प्राप्त है [वायु. ९९.१६६] ;[ह. वं. १.२०. १८ - ७६] ;[भा. ९.२१ - २२] ;[मत्स्य. ४९.७ - ५९] । इस राजवंश का राज्य दक्षिण पांचाल देश में था, एवं इनकी राजधानी कांपिल्य नगरी में थी । इस राजवंश के संस्थापक अजमीढ राजा को प्रियमेध, ऋक्ष, बृहदिशु एवं नील नामक चार पुत्र थे । इनमें से बृहदिषु ने हस्तिनापुर के मुख्य राज्य की परंपरा आगे चलायी, एवं इस प्रकार वह हस्तिनापुर ऋक्षवंशीय (सो. ऋक्ष.) राजवंश का वंशकर राजा साबित हुआ । इसी वंश से आगे चल कर हस्तिनापुर के कुरुवंश (सो. कुरु.) की उत्पत्ति हुई । अजमीढ राजा के पुत्रों में से नील ने आगे चल कर क्रिवि देश में उत्तर पांचाल (सो. नील.) राजवंश की स्थापना की । इस राजवंश की वंशावलि के संबंध में पौराणिक साहित्य में एकवाक्यता नहीं है । इनमें से लगभग पूरि वंशावलि मत्स्य में दी गयी है, जो ‘ पौराणिक राजवंशों की तालिका ’ में उदधृत की गयी है । भागवत में प्राप्त नामावलि में बहुत सारे राजाओं के नाम अनुल्लिखित हैं । गरुड में अंतिम तीन राजाओं के नाम नहीं दिये गये हैं । विष्णु के नामावलि में अंतिम राजा जनमेजय का नाम अप्राप्य है । मत्स्य में काव्य राजा के पुत्र का नाम समर दिया गया है ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  (सो. अनु.) ययाति राजा के पुत्र अनु के द्वारा स्थापित किये गये इस वंश की सविस्तृत जानकारी पौराणिक साहित्य में प्राप्त है [वायु. ९९.१२] ;[ब्रह्म. १३. १५ - २१] ;[भा. ९.२३.१ - ३] ;[मत्स्य. ४८.१०] । अनु राजा से आठवीं पीढी में उत्पन्न हुए महामनस् राजा को उशीनर एवं तितिक्षु नामक दो पुत्र थे, जिन्होंने क्रमशः उशीनर एवं तितिक्षु राजवंशों की स्थापना की । उनमें से उशीनर शाखा में से केकय, मद्रक, आदि वंश उत्पन्न हुए, एवं तितिक्षु राजवंश में से अंग, वंग, कलिंग, सुह्म, पुंड्र आदि उपशाखाओं का निर्माण हुआ । अनिल, कोटिक सुरथ, आदि वंश के लोग भी अनुवंशीय ही माने जाते हैं । इस वंश की जानकारी के संबंध में पौराणिक साहित्य में प्रायः सर्वत्र एकवाक्यता है । केवल ब्रह्म एवं हरिवंश में इस वंश के आद्य संस्थापक का नाम ययातिपुत्र अनु के जगह पूरुवंशीय रौद्रोंश्व राजा का पुत्र कक्षेयु दिया गया है । ययाति राजा के अन्य एक पुत्र द्रुह्यु के गांधार शाखा का कई हिस्सा कई स्थानों पर अनु का ही मानकर कई पुराणों में दिया गया है । किन्तु वह गलत प्रतीत होता है ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  आयु राजा के अनेनस् नामक पुत्र से ‘ क्षत्रधर्मन् ’ सामूहिक नाम धारण करनेवाले एक राजवंश की स्थापना हुई, जिसमें निम्नलिखित राजा समाविष्ट थे : - अनेनस् - क्षत्रधर्मन् - प्रतिक्षत्र - संजय - जय - विजय कृति - हर्यत्त्वत - सहदेव - अदीन - जयत्सेन - संकृति - कृतधर्मन् [ब्रह्मांड. ३.६८.७ - ११] ;[वायु. ९३.७ - ११]
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  यदुपुत्र अंधक राजा के द्वारा प्रस्थापित इस वंश की जानकारी पौराणिक साहित्य में प्राप्त है, जहाँ इस वंश की कुकुर, एवं भजमान नामक दो शाखाएँ दी गयीं हैं । उनमें से कुकुर वंश में देवक, उग्रसेन, आदि राजा उत्पन्न हुए थे, एवं भजमान (अंधक) वंश में प्रतिक्षत्र, कृतवर्मन्, कंवलबर्हिष, असमौजस् आदि राजा उत्पन्न हुए थे [ह. वं. १.३४]
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  (सो. अमा.) पुरुरवस् के पुत्र अमावसु का वंश सात पुराणों एवं रामायण में प्राप्त है [ब्रह्मांड. ३.६६.२२ - ६८] ;[वायु. ९१.५१ - ११८] ;[ब्रह्म. १०.१३] ;[ह. वं. १.२७] ;[विष्णु. ४.७.२] ;[वा. रा. बा. ३२ - ३४] । अमावसु स्वयं कान्यकुब्ज देश का राजा था, एवं उसके वंश में निम्नलिखित राजा प्रमुख थे : - अमावसु - भीम - कांचनप्रभ - सुहोत्र - जह्नु । अग्नि एवं महाभारत में इस वंश की मूल पुरुष अमावसु ही बताया गया है, किंतु इसमें उत्पन्न जह्नु राजा को ‘ भरतवंशीय ’ एवं अजमीढ राजा का पुत्र कहा गया है [अग्नि. २७७.१६ - १८] । किन्तु यह जानकारी अनैतिहासिक प्रतीत होती है । जह्नु के आठवें पीढी में उत्पन्न विश्वामित्र ऋषि को ऋग्वेद एवं अन्य वैदिक साहित्य में ‘ भरत ’ एवं ‘ भरतर्षभ ’ जरुर कहा गया है [ऋ. ३.५३.१२] ;[ऐ. ब्रा. ७.३.५] ;[सां. श्रौ. १५.२५] ; किंतु वहाँ आद्य विश्वामित्र नहीं, बल्कि भरत राजा सुदास राजा के राजपुरोहित का कार्य करनेवाले आद्य विश्वामित्र के किसी वंशज का निर्देश अभिप्रेत है । इस प्रकार भरत राजा का पुरोहित होने के कारण विश्वामित्र ऋषि स्वयं अमावसुकुलोत्पन्न हो कर भी ‘ भरतर्षभ ’ कहलाया ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  अनु राजा के वंश में उत्पन्न हुए बलि आनव के अंग, वंग आदि पाँच पुत्रों ने पूर्व भारत में पाँच स्वतंत्र वंशों की स्थापना की । इन पाँच पुत्रों के द्वारा स्थापन किये गये राजवंश ‘ आनव ’ सामूहिक नाम से प्रसिद्ध थे । इन आनव वंशों में अंग, वंग, पुण्ड्र सुह्म एवं कलिंग राजवंश समाविष्ट थे, जिनका राज्य गंजम से ले कर गंगा नदी के त्रिभुज प्रदेश तक फैला हुआ था । कई अभ्यासकों के अनुसार, इन लोगों के द्वारा समुद्र के मार्ग से इन देशों पर आक्रमण किया गया था, एवं इन प्रदेशों में स्थित सौद्युम्न लोगों को उत्कल पहाडियों के प्रदेश में ढकेल दिया था ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  आयु राजा के अनेनस् नामक पुत्र का वंश आयु वंश (सो. आयु.) अथवा अनेनस् वंश नाम से सुविख्यात है पुरुरवस् देखिये;[ह. वं. १.२९]
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  (सो. उशी.) ययातिपुत्र अनु के राजवंश की पश्चिमोत्तर भारत में स्थित शाखा उशीनर वंश नाम से सुविख्यात थी (अनु देखिये) ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  (सो. ऋक्ष.) हस्तिनापुर के हस्तिन् राजा के अजमीढ एवं द्विमीढ नामक दो पुत्र थे । इनमें से अजमीढ एवं उसके पुत्र ऋक्ष का हस्तिनापुर में राज्य करनेवाला वंश ऋक्षवंश नाम से प्रसिद्ध है । इस वंश के चौथे पुरुष कुरुपुत्र जह्नु से हस्तिनापुर में कुरुवंश का राज्य प्रारंभ हुआ । इसी वंश में उत्पन्न वसुपुत्र बृहद्रथ ने आगे चल कर मगधदेश में राज्य करनेवाले मगधवंश की स्थापना की । इन दो उपशाखाओं के अतिरिक्त ऋक्ष शाखा में उत्पन्न हुए राजा ऋक्षवंशीय (सो. ऋक्ष.) माने जाते हैं ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  पुरुरवस् एवं मनुकन्या इला से उत्पन्न सोमवंश का नामांतर (सोम वंश देखिये) ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  इस वंश की स्थापना कुरुवंश में उत्पन्न वसु राजा करुष ( मत्स्य) नामक पुत्र के द्वारा की गयी थी । इसी वंश के लोगों ने करुष देश की स्थापना की (पूरु देखिये) ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  काशीदेश में राज्य करने वाले इस राजवंश की स्थापना पुरुरवस् के पौत्र, एवं आयुराजा के पुत्र क्षत्रवृद्ध ने की । इन वंश के पहले चार राजाओं के नाम क्षत्रवृद्ध, सुनहोत्र (सुहोत्र), काश (काश्य) एवं दीर्घतपस् थे (क्षत्रवृद्ध देखिये) ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  यादव वंश की एक उपशाखा, जो यादववंशीय अंधक राजा एवं उसके पुत्र कुकुर के द्वारा स्थापित की गयी थी [ब्रह्म. १५] ; अंधक वंश देखिये ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  (सो. पुरु.) हस्तिनापूर के ऋक्ष राजा के वंश में उत्पन्न हुए एक उपशाखा को कुरुवंश कहते थे, जिसमें कुरुराजा से ले कर पाण्डवों तक के राजा समाविष्ट थे । इश वंश की जानकारी विभिन्न पुराणों में प्राप्त है [वायु. ९९.२१७ - २१८] ;[ब्रह्मांड १३.१०८ - १२३] ;[ह. वं. ३२. १८०१ - १८०२]
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  इस वंश की स्थापना कुरुवंशीय वसु राजा के कुशांब नामक पुत्र के द्वारा की गयी थी । इसी वंश के लोगों ने कौशांबि देश की स्थापना की ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  यादववंश की वृष्णि शाखा में उत्पन्न हुए कृष्ण का सविस्तृत वंश, एवं उसके परिवार की जानकारी हरिवंश में दी गयी है [ह. वं. १.३५]
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  यदुराजा के पुत्र क्रोष्टु ने मथुरा नगरी के यादव वंश की स्थापना की । इसीके नाम से मथुरा देश का यादव वंश क्रोष्टु नाम से सुविख्यात हुआ । आगे चल कर इसी वंश के ज्यामघ, भजमान, वृष्णि एवं अंधक शाखाओं का निर्माण हुआ [ब्रह्म. १४. १५] ; यदु देखिये ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  काशीदेश के इस सुविख्यात राजवंश की स्थापना आयुराजा के पौत्र एवं क्षत्रवृद्ध राजा के पुत्र सुनहोत्र (सुहोत्र) ने की । इस वंश की सविस्तृत जानकारी पौराणिक साहित्य में प्राप्त है [ब्रह्मांड ३.६६.२] ;[वायु. ९२.६६ - ७४,९३.७ - ११] ;[ब्रह्म. ११.३२] ;[ह. वं. १.२९] ;[विष्णु. ४.८] ;[भा. ९.१७. २ - ५] । काशीदेश में राज्य करने के कारण, इस वंश को काश्य नामान्तर भी प्राप्त था । पौराणिक साहित्य में वृद्धक्षत्र राजा का वंश भी प्राप्त है, जो प्रायः क्षत्रवृद्ध वंश से ही मिलता जुलता है । इस वंश के पहले चार राजाओं के नाम क्षत्रवृद्ध, सुनहोत्र, काश (काश्य) एवं दीर्घतपस् थे । भारतीय युद्ध के काल में इस वंश के सुबाहु एवं अभिभू (सुविभू) काशी देश में राज्य करते थे । भागवत में प्राप्त इस वंश की वंशावलि में काश्य एवं दीर्घतपस् के दरम्यान काशी एवं राष्ट्र इन दो राजाओं के नाम अन्य पुराणों से अधिक पाये जाते हैं । दिवोदास एवं प्रतर्दन ये सुविख्यात राजा इसी वंश में उत्पन्न हुए थे । किन्तु दिवोदास (प्रथम) से ले कर दिवोदास (द्वितीय) तक के राजाओं का निश्चित काल एवं वंशक्रम समझ में नहीं आता है । हरिवंश, ब्रह्म एवं अग्नि पुराणों में इस वंश के आद्य पुरुष के नाते आयुपुत्र सुहोत्र का नहीं, बल्कि पौरववंशीय सुहोत्र राजा का नाम दिया गया है । किन्तु इस वंश में उत्पन्न हुए दिवोदास एवं प्रतर्दन राजा पौरववंशीय सुहोत्र राजा से काफी पूर्वकालीन थे, यह बात ध्यान में रखते हुए यह जानकारी अनैतिहासिक प्रतीत होती है । इस वंश के राजपुरोहित भरद्वाज थे । हैहय राजाओं से इस वंश के लोगों का अनेकानेक पीढियों तक युद्ध चलता रहा । काशीदेश के राजाओं के निम्नलिखित राजाओं का निर्देश पौराणिक साहित्य में पाया जाता है । किन्तु क्षत्रवृद्धवंश की नामावलि में उनका नाम अप्राप्य है : - १. अजातरिपु; २. धृतराष्ट्र वैचित्र्यवीर्य; ३. सुबाहु; ४. सुवर्णवर्मन्‍; ५. होमवाहन; ६. ययाति; ७. अंबा का पिता । क्षत्रवृद्ध के अन्य एक पुत्र का नाम प्रतिक्षत्र था, जिसने भी अपने स्वतंत्रवंश की स्थापना की । प्रतिक्षत्र के इस वंश में उत्पन्न हुए १० - १३ राजाओं का निर्देश पौराणिक साहित्य में प्राप्त है । किंतु उनका काल एवं राज्य आदि के संबंध में निश्चित जानकारी अप्राप्य है ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  (सो. कुरु.) इस वंश की स्थापना कुरुवंशीय चैद्योपरिचर वसु राजा के प्रत्यग्रह नामक पुत्र के द्वारा की गयी थी । कई अभ्यासकों के अनुसार, इस वंश का संस्थापक विदर्भपुत्र चिदि था । किंतु इन दोनों राजाओं के जीवनचरित्र में ‘ चैद्य ’ वंश की जानकारी अप्राप्य है । इस वंश का सब से सुविख्यात राजा शिशुपाल था, जो कृष्ण एवं पाण्डवों का समकालीन था, निम्नलिखित राजाओं का निर्देश पौराणिक साहित्य में ‘ चैद्य ’ नाम से किया गया है, किन्तु चैद्य वंश की वंशावलि में उनका निर्देश अप्राप्य है : - १. दमघोष, जिसके पुत्र का नाम धृष्टकेतु, एवं पौत्र का नाम शिशुपाल सूनीथ था; २. कशु चैद्य ३. कौशिक; ४. चित्र; ५. चिदि कौशिकपुत्र; ६. दण्डधार; ७. देवापि; ८. शलभ; ९. सिंहकेतु; १०. हरि; ११. जह्नु ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  सुविख्यात कुरु वंश का नामान्तर ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  यादववंश की एक उपशाखा, जो परावृत राजा के पुत्र ज्यामघ के द्वारा स्थापित की गयी थी [भा. ९.२४] ;[वायु. ९५] ;[ब्रह्म. १५.१२ - २९] ;[विष्णु. ४.१६] ; [भा. ९.२४]
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  पूर्व हिंदुस्थान का एक राजवंश, जिसका विस्तार आगे चल कर पूर्व हिंदुस्थान में स्थापित हुए अंग, वंग आदि आनव वंशों में हुआ । अनुवंशीय सम्राट् महामनस् को उशीनर एवं तितिक्षु नामक दो पुत्र थे, जिनमें से तितिक्षु ने पूर्व भारत में स्वतंत्र राजवंश की स्थापना की ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  ययाति राजा के तुर्वसु नामक पुत्र के द्वारा इस वंश की स्थापना हुई, जिसमें निम्नलिखित राजा प्रमुख थे : - तुर्वसु - वह्नि - गर्भ - गोभानु - त्रिसानु - करंधम मरुत्त । मरुत्त राजा को कोई पुत्र न होने के कारण, उसने पुरुवंशीय राजा दुष्यन्त को गोद में लिया, एवं इस प्रकार तुर्वसु वश पुरुवंश में सम्मिलित हुआ । किंतु कई पुराणों में इनकी एक दाक्षिणात्य शाखा का निर्देश प्राप्त है, जिसे पांडव चोल, केरल, आदि राजवंशों की स्थापना का श्रेय दिया गया है [पद्म. उ. २९०.१ - २] । पार्गिटर के अनुसार, किसी तुर्वसु राजकन्या के द्वारा इन दाक्षिणात्य वंशों की स्थापना की गई होगी । इस वंश की जानकारी विभिन्न पुराणों में प्राप्त है [ब्रह्मांड. ३.७४.१ - ४] ;[वायु. ९९.१ - ३, भा. ९.२३.१६ - १८] ;[मत्स्य. ४८.१ - ५] । अग्नि में गांधार लोगों को इसी वंश में शामिल किया गया है, किंतु गांधार लोग तुर्वसुवंशीय न होकर द्रुह्युवंशीय थे । वैदिक साहित्य में कुरुंग को तुर्वसुवंशीय कहा गया है । इसी साहित्य में इसे म्लेंच्छों का राजा कहा गया है । हरिवर्मन् नामक एक तुर्वसुवंशीय राजा का निर्देश कई ग्रंथो में प्राप्त है, किन्तु इसके वंश के वंशावलि में उसका नाम अप्राप्य है ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  ययाति राजा के द्रुह्यु नामक पुत्र के द्वारा स्थापना किये गये इस वंश का विस्तार प्रायः पश्चिमोत्तर भारत में था [ब्रह्म. १३.१४८] ;[ह. वं. १.३२] ;[मत्स्य. ४८.६ - १०] ;[विष्णु. ४.१६] ;[भा. ९.२३.१४ - १५] ;[ब्रह्मांड. ३.७४.७] ;[वायु. ९९.७ - १२] । द्रुह्यु राजा के बभ्रु एवं सेतु नामक दो पुत्र थे, जिनके अंगारसेतु, गांधार, धृत, प्रचेतस् आदि वंशजों के द्वारा इस वंश का विस्तार हुआ । पौराणिक साहित्य के अनुसार, प्रचेतस् के वंशजों ने भारतवर्ष के उत्तर में स्थित म्लेच्छ देशों में नये राज्यों का निर्माण किया । इसी वंश का जो वर्णन ब्रह्म एवं हरिवंश में प्राप्त है, वहाँ गांधार के बाद उत्पन्न हुए राजा गलती से अनुवंशीय राजा बतलाये गये है । इन लोगों का निर्देश वैदिक साहित्य में भी प्राप्त हैं ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  पुरुवंशीय हस्तिन् राजा के अजमीढ एवं द्विमीढ नामक दो पुत्र थे, जिनमें से अजमीढ हस्तिनापुर का राजा हो गया, एवं द्विमीढ ने स्वतंत्र राजवंश की स्थापना की, जो द्विमीढ राजवंश नाम से प्रसिद्ध हुआ [ह. वं. १.२०] ;[विष्णु. ४.१९.१३] ;[भा. ९.२१, २७ - ३०] ;[वायु. ९९.१८४, १९३] ;[मत्स्य. ४९. ७० - ७९] । जनमजेय राजा के पश्चात् यह वंश कुरुवंश में शामिल हुआ । वायु में प्राप्त द्विमीढवंशीय राजाओं के नाम एवं वंशक्रम की तालिका ‘ पौराणिक राजवंशों की नामावलि ’ में दी गयी है । मत्स्य एवं हरिवंश में इस राजवंश की स्थापना अजमीढ राजा के द्वारा की जाने का निर्देश गलती से किया गया है । विष्णु में द्विमीढ राजा को भल्लाट राजा का पुत्र कहा गया है, जो निर्देश भी अनैतिहासिक प्रतीत होता है । वायु एवं विष्णु में प्राप्त इस वंश की नामावलि में उन्नीस राजाओं के नाम प्राप्त हैं । विष्णु, भागवत एवं गरुड में इनमें से सुवर्मन्, सार्वभौम, महत्पौरव एवं रुक्मरथ राजाओं के नाम अप्राप्य हैं । भागवत में उग्रायुध राजा को नीप कहा गया है । इस राजा ने भल्लाटपुत्र जनमेजय राजा का वध कर दक्षिण पांचाल देश की राजगद्दी प्राप्त की । पश्चात् भीष्म ने उग्रायुध राजा का वध किया ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  इस वंश की स्थापना पार राजा के पुत्र नीप राजा ने की । इस वंश में उत्पन्न हुए जनमेजय दुर्बुद्धि नामक कुलांगार राजा का उग्रायुध ने वध किया, एवं इस प्रकार नीपवंश नष्ट हो कर द्विमीढवंश में सम्मीलित हुआ [मत्स्य. ४९] ;[ह. वं. १.२०]
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  उत्तर पांचाल देश का एक सुविख्यात राजवंश, जो अजमीढपुत्र नील के द्वारा स्थापित किया गया था । इस वंश में उत्पन्न हुए नील से लेकर पृषत् तक के सोलह राजाओं का निर्देश पुराणो में अनेक स्थानों पर प्राप्त है [वायु. ९३.५५ - १०४] ;[ब्रह्म. १३.२ - ८, ५० - ६३, ८० - ८१] ;[ह. वं. १.२०.३१ - ३२] ;[विष्णु. ४. १९] ;[भा. ९.२० - २१] ;[म. आ. ८९ - ९०] ;[मत्स्य. ४९. १ - ४२] । इस वंश के भर्म्याश्व राजा को ‘ पांचाल ’ सामूहिक नाम धारण करनेवाले पाँच पुत्र थे, इसी कारण इनके राज्य को ‘ पांचाल ’ नाम प्राप्त हुआ । यह राजवंश बहुत ही महत्त्वपूर्ण माना जाता है, क्यों कि, इस वंश में उत्पन्न हुए मुद्गल, वध्रश्व, दिवोदास, सुदास, च्यवन, सहदेव, सोमक, पिजवन आदि राजाओं का निर्देश वैदिक साहित्य में प्राप्त है । इस वंश का अंतिम राजा द्रुपद था, जिसे जीत कर द्रोण ने उत्तर पांचाल देश का राज्य अपने आधीन किया, एवं दक्षिण पांचाल देश का राज्य उसे दे दिया । इसी वंश की एक शाखा (अहल्या - शतानंद) आगे चल कर ‘ आंगिरस ब्राह्मण ’ बन गयी ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  पुरुरवस् राजा एवं मनुकन्या इला से उत्पन्न ‘ सोमवंश ’ का नामांतर । पुरुरवस् से ले कर आयु, नहुष, ययाति, एवं यदु तक का राजवंश पुरुरवस् वंश (सो. पुरुरवस्.) नाम से सुविख्यात है । पुरुरवस् से ले कर आयुपुत्र अनेनस् तक का वंश ‘ आयु वंश ’ (सो. आयु.) नाम से सुविख्यात है ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  ययातिपुत्र पुरु से उत्पन्न हुआ वंश पुरु वंश नाम से सुविख्यात है । इस वंश के तीन प्रमुख भाग माने जाते हैं : - १. सो. पूरु, जिसमें पूरु से ले कर अजमीढ तक के राजा समाविष्ट थे; २. सो. ऋक्ष, जिसमें अजमीढ से ले कर कुरु तक के राजा समाविष्ट थे; ३. सो. कुरु, अथवा सो जह्नु, जिसमें कुरुपुत्र जह्नु से ले कर पाण्डवों तक के राजा समाविष्ट थे । इन तीनों वंशों की जानकारी पौराणिक साहित्य में प्राप्त है [वायु. ९३.५५ - १०४] ;[ब्रह्म. १३.२ - ८, ५० - ६३, ८० - ८१] ;[ह. वं. १. २०.३१ - ३२] ;[विष्णु. ४.१९] ;[भा. ९.२० - २१] ;[म. आ. ८९ - ९०] ;[मत्स्य. ४९.१ - ४३]
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  इस वंश के मतिनार राजा तक सभी पुराणों में एकवाक्यता है । किन्तु महाभारत में प्राप्त वंशावलि कुछ अलग ढँग से दी गयी है । वहाँ रौद्राश्व एवं रुचेयु राजाओं के नाम अप्राप्य है, एवं अहंयाति तथा मतिनार राजाओं के बीच निम्नलिखित दस राजाओं का समावेश किया गया है : - १. सार्वभौम; २. जयत्सेन; ३. अवाचीन; ४. अरिह; ५. महाभौम; ६. अयुतानयिन्; ७. अक्रोधन; ८. देवातिथि; ९. ऋच्; १०. ऋक्ष । किन्तु महाभारत के द्वारा दी गयी यह नामावलि अनैतिहासिक प्रतीत होती है, क्यों कि, वहाँ इन राजाओं के द्वारा अंग, कलिंग एवं विदर्भ राजकन्याओं के साथ विवाह करने का निर्देश प्राप्त है, जो राज्य इस काल में अस्तित्व में नहीं थे । इससे प्रतीत होता है कि, इन राजाओं को पूरुवंश के तृतीय कालविभाग (सो. कुरु) में सुरथ एवं भीमसेन के दरम्यान अंतर्भूत करनेवाली पौराणिक परंपरा सहीं प्रतीत होती है । तंसु एवं दुष्यंत के दरम्यान उत्पन्न हुए राजाओं की नामावलि महाभारत एवं पौराणिक साहित्य में अपूर्ण एवं अस्पष्ट रुप से प्राप्त है । पौराणिक साहित्य में दुष्यंत राजा की मातामही का नाम इलिना दिया गया है । महाभारत में उसी इलिना का निर्देश ‘ इलिन (अनिल) ’ राजा के नाम से किया गया है ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  हस्तिन् राजा को अजमीढ एवं द्विमीढ नामक दो पुत्र थें । इसमें से अजमीढ एवं ऋक्ष से ले कर कुरु तक का वंश ऋक्ष वंश (सो. ऋक्ष) नाम से सुविख्यात था । इस शाखा के राजाओं की नामावलि के संबंध में महाभारत एवं पुराणों में एकवाक्यता है, किन्तु फिर भी इन दोनों में प्राप्त नामावलि अपूर्ण सी प्रतीत होती है । विशेष कर ऋक्षु राजा के पूर्वकालीन एवं उत्तरकालीन राजाओं के संबंध में वहाँ प्राप्त जानकारी अत्यंत संदिग्ध प्रतीत होती है । आगे चल कर ऋक्ष के वंश से ही कुरुवंश का निर्माण हुआ ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  कुरुवंश की स्थापना करनेवाले कुरु राजा को परिक्षित्, जह्नु एवं एवं सुधन्वन् नामक तीन पुत्र थे । इनमें से परिक्षित् राजा को जनमेजय (प्रथम) नामक पुत्र, एवं श्रुतसेन एवं भीमसेन नामक पौत्र थे । परिक्षित् राजा के इन पौत्रों का निर्देश राजा के नाते कहीं भी प्राप्त नहीं है । इससे प्रतीत होता है कि, राजा के ज्येष्ठ पुत्र हो कर भी उनका राज्याधिकार नष्ट हो चुका था । इस प्रकार परिक्षित् (प्रथम) के पश्चात् जह्नु राजा के पुत्र सुरथ हस्तिनापुर का राजा बन गया, एवं उसी राजा से कुरुवंश को कुरु नाम प्राप्त हुआ । सुरथ से ले कर अभिमन्यु तक के राजाओं के संबंध में पौराणिक साहित्य में काफी एकवाक्यता है । कुरु राजा का तृतीय पुत्र सुधन्वन् के वंशज वसु ने मगध एवं चैद्य राजवंशों की स्थापना की (मगध वंश देखिये) । पौराणिक साहित्य में निम्नलिखित राजाओं को कौरव कहा गया है, किन्तु कौरव वंशावलि में उनका नाम अप्राप्य है : - १. अभिप्रतारिन् काक्षसेनि; २. उचैः श्रवस्; ३. कौपेय; ४. पौरव; ५. बाह्निक प्रातिपीय; ६. ब्रह्मदत्त चैकितानेय ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  इस वंश की स्थापना क्षत्रवृद्धपुत्र प्रतिक्षत्र राजा के द्वारा हुई थी (क्षत्रवृद्ध देखिये) । पौराणिक साहित्य में इस वंश का निर्देश अनेक स्थानों पर प्राप्त है [भा. ९.१७.१६ - १८] ;[वायु. ९३.७ - ११] ;[ब्रह्म. ११.२७ - ३१] ;[ह. वं. १.२९.१ - ५]
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  बलि आनव राजा के द्वारा पूर्व भारत में स्थापना किये गये अंग, वंग आदि वंशों से उपन्न लोगों का सामुहिक नाम (अनु वंश देखिये) ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  बभ्रु दैवावृध नामक यादवराजा के द्वारा स्थापन किये गये इस वंश के नृप भोज मर्तिकावतिक नाम से सुविख्यात थे [ब्रह्म. १५.३५ - ४५] । यह वंश यादववंशांतर्गत क्रोष्टु वंश की ही उपशाखा माना जाता था [ह. वं. १.३७]
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  (सो. क्रोष्टु.)---यादव राजा अंधकपुत्र भजमान के द्वारा स्थापित इस वंश को अंधक वंश नामान्तर भी प्राप्त था यदु देखिये;[ब्रह्म. १५.३२ - ४५] ;[विष्णु. ४.१४] ;[भा. ९.२४]
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  (सो. पूरु.)---पूरुवंशीय सम्राट् भरत राजा के वंश में उत्पन्न हुई पूरुवंश की सारी शाखाएँ भरतवंशीय कहलाती थी । इन उपशाखाओं में अजमीढ शाखा, द्विमीढ शाखा एवं उत्तर एवं दक्षिण पांचाल के पूरुवंशीय राजवंश समाविष्ट थे [वायु. ९९.१३४] ;[मत्स्य. २४.७१] ;[ब्रह्म. १३.५७]
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  (सो. सह.)---हैहय वंश की पाँच उपशाखाओं में से एक । अन्य चार उपशाखाओं के नाम वीतिहोत्र, शर्याति, अवंती एवं तुण्डिकेर थे (हैहय एवं बभ्रु वंश देखिये) ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  इस राजवंश की स्थापना कुरुपुत्र सुधन्वन् राजा के वंश में उत्पन्न हुए वसु राजा के द्वारा की गयी थी । वसुराजा की मृत्यु के पश्चात् उसका पूर्वभारत में स्थित साम्राज्य उसके निम्नलिखित पुत्रों में निम्नप्रकार बाँट दिया गया : - १. बृहद्रथ (मगध); २. प्रत्यग्रह (चेदि); ३. कुशांब (कौशांबी); ४. यदु (करुष); ५. मावेल्ल (मत्स्य) । मगध राजवंश की सविस्तृत जानकारी पौराणिक साहित्य में प्राप्त है [विष्णु. ४.१९.१९] ;[वायु. ९९.२१७ - २१९] ;[भा. ९.२२.४९] ;[ह वं. १.३२] ; ८८.९८ । इनमें से ब्रह्म की वंशावलि बृहद्रथ राजा के पौत्र ऋषभ राजा तक दी गयी है । विष्णु एवं भागवत में जरासंध को बृहद्रथ राजा का पुत्र कहा गया है । किन्तु वस्तुतः वह बृहद्रथ राजा की तेरहवी पीढी में उत्पन्न हुआ था ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  इस सुविख्यात राजवंश का प्रारंभ यदुपुत्र क्रोष्ट्रु के द्वारा हुआ । कालक्रम की दृष्टि से इस वंश के कालखण्ड माने जाते हैं : - १. क्रोष्टु से सात्वत तक; २. सात्वत से प्रारंभ होनेवाला बाकी उर्वरित भाग ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  इस वंश की जानकारी बारह पुराणों में प्राप्त है [वायु. ९६.२५५] ;[ब्रह्मांड. ३.७०.१४] ;[वायु. ९४ - ९६] ;[ब्रह्म. १३.१५३ - २०७] ;[ह. वं. १.३६, २.३७ - ३८] ;[पद्म. सृ. १२ - १३] ;[विष्णु. ४. १२] ;[भा. ९.२३.३० - ३४] । महाभारत में भी इस वंश की जानकारी प्राप्त है [म. अनु. २५१.२६] । क्रोष्टु से ले कर परावृत्त तक के राजाओं के संबंध में सभी पुराणों में प्रायः एकवाक्यता है । फिर भी कई पुराणों में पृथुश्रवस्, उशनस्, रुक्मकवच, एवं निर्वृत्ति राजाओं के पश्चात् एक पीढी ज्यादा दी गयी है । परावृत्त राजा को दो पुत्र थे, जिनमें से ज्यामघ नामक उनका कनिष्ठ पुत्र यदुवंश का वंशकर राजा साबित हुआ । उसने एवं उसके पुत्र विदर्भ ने सुविख्यात विदर्भराज्य की स्थापना की । विदर्भराजा के ज्येष्ठपुत्र रोमपाद ने विदर्भ का राज्य आगे चलाया । उसी के वंश में क्रथ (भीम), देवक्षत्र, मधु आदि राजा उत्पन्न हुए, एवं उसी वंश में उत्पन्न हुए सात्वत राजा ने इस वंश का वैभव चरम सीमा पर पहुँचाया । मधु से ले कर सात्वत तक के राजाओं के नामावलि के संबंध में पुराणों में एकवाक्यता नहीं है । विदर्भ राजा के द्वितीय पुत्र का नाम कौशिक था, जिसने चेदि देश में नये राजवंश की स्थापना की । विदर्भ राजा के तृतीय पुत्र का नाम लोमपाद था, जिसके वंश में उत्पन्न हुए तेरह राजाओं की नामावलि भागवत एवं कूर्म में निम्न प्रकार दी गयी है : - १ लोमपाद; २. बभ्रु; ३. आह्रति; ४. श्वेत; ५. विश्वसह; ६. कौशिक; ७. सुयंत; ८. अनल; ९. श्वेनि; १०. द्युतिमंत; ११. वपुष्मन्त; १२. बृहन्मेधस्; १३. श्रीदेव; १४. वीतरथ [भा. ९.२४.१ - २] । किन्तु इस वंश का राज्य कहाँ था, इस संबंध में कोई भी जानकारी वहाँ नहीं दी गयी है ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  सात्वत राजा ने इक्ष्वाकुवंशीय शत्रुघातिन् राजा से मथुरा नगरी को जीत कर वहाँ अपना राज्य प्रस्थापित किया । सात्वत राजा को भजमान, देवावृध, वृष्णि, अंधक नामक चार पुत्र थे, जिनके द्वारा प्रस्थापित किये गये वंश वृष्णि (सो. वृष्णि.) सामूहिक नाम से सुविख्यात थे । इस वंश की निम्नलिखित शाखाएँ थी : -
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  भजमान एवं उसके वंश में उत्पन्न हुए अन्य राजा मथुरा में ही राज्य करते थें ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  देवावृध एवं उसका पुत्र बभ्रु ने मार्तिकावत नगरी में राज्य करनेवाले भोज राजवंश की स्थापना की ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  अंधक राजा को कुल चार पुत्र थें, जिनमें कुकुर एवं भजमान प्रमुख थें । इन दो पुत्रों ने क्रमशः कुकुर एवं अंधक नामक राजवंशों की स्थापना की । ये दोनों वंश मथुरा प्रदेश में राज्य करते थे, एवं उनमें क्रमशः कंस एवं कृष्ण उत्पन्न हुए थें ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  वृष्णि राजा को सुमित्र (अनमित्र), युधाजित्, देवमीढुष एवं अनमित्र (माद्रीपुत्र) नामक चार पुत्र थें, जिन्होंने चार स्वतंत्र वंशों की स्थापना की । इन वंशों में उत्पन्न हुए प्रमुख यादव निम्न प्रकार थें : - १. सुमित्र शाखा---सत्राजित्, भंगकार; २. युधाजित् शाखा---श्वफल्क, अक्रूर; ३. देवमीढूष शाखा---वसुदेव, बलराम एवं कृष्ण; ४. अनमित्र (माद्रीपुत्र) शाखा---शिनि, युयुधान सात्यकि, असंग आदि ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  उपर्युक्त यादव राजाओं में से शूरपुत्र वसुदेव का वंश वसुदेव वंश (सों. वसु.) नाम से सुविख्यात है । अंधकवंश ही एक उपशाखा विदूरथवंश (सो. विदू.) नाम से सुविख्यात हैं, जिसमें विदूरथपुत्र राजाधिदेव से ले कर तमौजस तक के राजा समाविष्ट थे । वायु एवं मत्स्य में यादववंश की क्रमशः ग्यारह, एवं एक सौ शाखाएँ दी गयी है [वायु. ९६.२५५] ;[मत्स्य. ४७.२५ - २८] । इन शाखाओं का विस्तार केवल मथुरा में ही नहीं, बल्कि दक्षिण हिंदुस्थान में भी हुआ था [ह. वं. २.३८.३६ - ५१] । यदु राजा का अन्य एक पुत्र सहस्त्रजित् ने सुविख्यात हैहयवंश की स्थापना की, जो यादववंश की ही एक शाखा मानी जाती है (हैहय वंश देखिये) । “ पौराणिक वंशों की तालिका ” में दी गयी यादववंश की जानकारी विष्णुपुराण का अनुसरण कर दी गयी है । अन्य पुराणों में प्राप्त जानकारी वहाँ कोष्टक में दी गयी है ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  ययाति राजा के यदु, पूरु, तुर्वसु, द्रुहयु, अनु आदि पाँच पुत्रों के द्वारा उत्पन्न हुए राजवंश ‘ ययाति वंश ’ सामूहिक नाम से सुविख्यात थे [वायु. ९३.१५ - २८]
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  आयु राजा के रजि नामक पुत्र के द्वारा उत्पन्न हुआ वंश ‘ रजि वंश ’ नाम से सुविख्यात है । आगे चल कर इसी वंश से ‘ राजेय क्षत्रिय ’ नामक लोकसमूह का निर्माण हुआ [वायु. ९२.७४ - ९९]
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  आयुपुत्र रम्भ के द्वारा स्थापन किया गया वंश ‘ रम्भवंश ’ नाम से सुविख्यात है [भा. १०.१७.१०] । इस वंश के संबंध में अन्य कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं है ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  यादववंशांतर्गत देवमीढुप शाखा में से शूरपुत्र वसुदेव राजा का वंश ‘ वसुदेव वंश ’ नाम से सुविख्यात है [ब्रह्म. १५.३०]
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  कुरुवंशीय सुधन्वन् राजा के वसु नामक पुत्र ने पूर्व हिंदुस्थान में स्थित यादवों का चेदि साम्राज्य जीत लिया, एवं उसे अपने पाँच पुत्रों में बाँट दिया । वे पाँच वंश वासव वंश नाम से सुविख्यात थे ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  सात्वतवंशांतर्गत भजमान शाखा में से विदूरथपुत्र राजाधिदेव से ले कर तमोजस् तक के राजा विदूरथवंशीय (सो. विदू.) कहलाते हैं (यदु देखिये) ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  यादववंशीय कृष्णवंश को वायु में विष्णुवंश कहा गया है [वायु. ९६ - ९८]
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  यादववंशांतर्गत सात्वत राजा के वृष्णि नामक पुत्र का वंश वृष्णि नाम से सुविख्यात है [ब्रह्म. १४.२ - १५, ३१] ;[ह. वं. १.३४] ;[भा. ९.२४.१२ - १८] ; यदु देखिये ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  यदु राजा के पुत्र सहस्त्रजित् के द्वारा प्रस्थापित किये गये ‘ हैहय वंश ’ का नामान्तर (हैहय वंश देखिये) ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  यदुवंशांतर्गत इस वंश शाखा का संस्थापक सात्वत माना जाता है । इस वंश की भजमान, देववृध, अंधक एवं वृष्णि नामक चार शाखाएँ मानी जाती हैं [म. शां. ३३६.३१ - ४९] । सात्वत धर्म की जानकारी भी महाभारत में प्राप्त है ।
सोमवंश (राजवंश) (सो.) n.  यदुराजा के सहस्त्रजित् नामक पुत्र के द्वारा स्थापित किये गये इस राजवंश की जानकारी पौराणिक साहित्य में सर्वत्र प्राप्त है [ब्रह्मांड. ३.६९.३] ;[वायु. ९४.१ - १०] ;[विष्णु. ४.११.३] ;[भा. ९. २३.२० - २८] ;[ब्रह्म. १३.१५४] ;[ह. वं. १.३३] । इस वंश का मुख्य राज्य मालवा में नर्मदा नदी के किनारे माहिष्मती नगरी में था, एवं उनकी वीतिहोत्र, शर्याति, भोज, आनर्त (अवंती) एवं तुण्डिकेर (कुण्डिकेर) ये पाँच शाखाएँ प्रमुख थी । हरिवंश एवं ब्रह्म के अनुसार, भरत लोगों का अंतर्भाव भी ‘ हैहय समूह ’ में किया जाता था । इनमें से प्रमुख राजा का नाम तालजंघ था । किन्तु आगे चल कर वह सारे हैहय वंश की उपाधि बन गयी । भार्गव ऋषि इन लोगों के पुरोहित थे, एवं इनका उपास्य दैवत दत्त आत्रेय था । इसके अतिरिक्त वसिष्ठ, पुलस्त्य आदि ऋषियों से भी इनका घनिष्ठ संबंध था । परशुराम जामदग्न्य से इसका प्राणांतिक शत्रुत्व हुआ था, जिसने इन्हें जडमूल से उखाड देने की कोशिश की थी । किन्तु अन्त में अपने इन प्रयत्नों में परशुराम असफल हुआ, एवं इनका अस्तित्व अबाधित रहा । इस वंश के निम्नलिखित राजा विशेष प्रख्यात थे : - कार्तवीर्य अर्जुन, एकवीर, कुमार, शशिबिंदु, भूत, शंख । इसी वंश में उत्पन्न हुआ वीतहव्य राजा राज्यभ्रष्ट हो कर भृगुवंश का एक श्रेष्ठ ऋषि बन गया । इसी कारण पौराणिक साहित्य में उसे राजा न समझ कर उसके वंशशाखा की कोई भी जानकारी वहाँ नहीं दी गयी है । महाभारत में वीतहव्य से ले कर शौनक तक के वंश की जानकारी प्राप्त है । कई अभ्यासकों के अनुसार, वीतहव्य ही हैहयवंश का अंतिम राजा माना गया है ।

सोमवंश     

A dictionary, Marathi and English | Marathi  English
The lunar dynasty or series of princes supposed to descend through Buddha from the moon.

सोमवंश     

Aryabhushan School Dictionary | Marathi  English
 m  The lunar dynasty.

सोमवंश     

मराठी (Marathi) WN | Marathi  Marathi
See : चंद्रवंश

सोमवंश     

A Sanskrit English Dictionary | Sanskrit  English
सोम—वंश  m. m. the lunar race or dynasty (See चन्द्र-व्°), [Hariv.] ; [Śatr.] (cf.[IW. 375; 411 n. 1] )
ROOTS:
सोम वंश
सोम—वंश  mfn. mfn. = -वंशीय
ROOTS:
सोम वंश
सोम—वंश  m. m.N. of युधि-ष्ठिर, [L.]
ROOTS:
सोम वंश

सोमवंश     

Shabda-Sagara | Sanskrit  English
सोमवंश  m.  (-शः)
1. A name of YUDHISHṬHIRA.
2. The lunar dynasty, or series of princes supposed to descend through BUDHA the son of SOMA, or the moon.
E. सोम, and वंश family.
ROOTS:
सोम वंश

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